मेरा बेटा
ज़िद करता है
कहानी सुनाने की
मैं उसे सुनाता हूं : " एक दयालु राजा था ..."
" और उसने किसी ग़रीब पर
अहसान किया !"
उसके लहज़े में व्यंग्य
और आंखों में प्रश्न
देख कर
मैं दूसरी कहानी छेड़ता हूं:
" एक ग़रीब लड़का था
और एक राजकुमारी .."
" और उन दोनों की शादी हो गई ! "
उसका व्यंग्य और मुखर होता है -
" आपके इन दोनों ध्रुवों के बीच
ऐसी जगह नहीं कोई
जहां एक आदमी
अपने पांव जमा सके ?"
अब
मैं उसे एकदम नई कहानी
सुनाना चाहता हूं
एक ऐसे आदमी की
जिसके तीन पैर हैं !
उसकी मुद्रा आक्रामक होती है
और वह
अपनी नाक की सीध में
अंगुली खड़ी कर
चेतावनी के स्वर में
बोल उठता है ;
" देखो, डैडी !
कहानियों के बहाने
इस तरह सरासर झूठ
क्यों पेलना चाहते हैं आप ?
कहीं आप भी
उन लोग की साज़िश में
शरीक़ तो नहीं
जो सारी की सारी पीढ़ी को
अपनी टांगों के बीच से
निकाल देना चाहते हैं ?
कभी तो सुनाइए
किसी अत्याचारी शासक के ख़िलाफ़
जनता-जनार्दन के
जाग उठने की कहानी
ज़ारों के पतन के इतिहास
हिटलर की मौत
किसी फ़िलिस्तीनी / वियतनामी की
संघर्ष-गाथा
किसी भारतीय बेरोज़गार के पिता की व्यथा
किसी शहीद की बेटी के ब्याह की कथा-
क्या सचमुच
ऐसी कोई कहानी नहीं है आपके पास ? "
मैं शर्मिंदा हूं/ कहना चाहता हूं,
" सॉरी बेटे
ऐसी कोई कहानी
नहीं आती मुझे… ! "
मेरी पीड़ा
मेरी आंखों से छलकती होगी ..
आप महसूस कर सकते हैं उसे
कहानी
मेरे अंतर में कुलबुलाती है
करवट लेती है
लेकिन .... प्रसव में देर है अभी !
( 1985 )
-सुरेश स्वप्निल
* संभवतः, अप्रकाशित/अप्रसारित रचना। प्रकाशनार्थ उपलब्ध।
ज़िद करता है
कहानी सुनाने की
मैं उसे सुनाता हूं : " एक दयालु राजा था ..."
" और उसने किसी ग़रीब पर
अहसान किया !"
उसके लहज़े में व्यंग्य
और आंखों में प्रश्न
देख कर
मैं दूसरी कहानी छेड़ता हूं:
" एक ग़रीब लड़का था
और एक राजकुमारी .."
" और उन दोनों की शादी हो गई ! "
उसका व्यंग्य और मुखर होता है -
" आपके इन दोनों ध्रुवों के बीच
ऐसी जगह नहीं कोई
जहां एक आदमी
अपने पांव जमा सके ?"
अब
मैं उसे एकदम नई कहानी
सुनाना चाहता हूं
एक ऐसे आदमी की
जिसके तीन पैर हैं !
उसकी मुद्रा आक्रामक होती है
और वह
अपनी नाक की सीध में
अंगुली खड़ी कर
चेतावनी के स्वर में
बोल उठता है ;
" देखो, डैडी !
कहानियों के बहाने
इस तरह सरासर झूठ
क्यों पेलना चाहते हैं आप ?
कहीं आप भी
उन लोग की साज़िश में
शरीक़ तो नहीं
जो सारी की सारी पीढ़ी को
अपनी टांगों के बीच से
निकाल देना चाहते हैं ?
कभी तो सुनाइए
किसी अत्याचारी शासक के ख़िलाफ़
जनता-जनार्दन के
जाग उठने की कहानी
ज़ारों के पतन के इतिहास
हिटलर की मौत
किसी फ़िलिस्तीनी / वियतनामी की
संघर्ष-गाथा
किसी भारतीय बेरोज़गार के पिता की व्यथा
किसी शहीद की बेटी के ब्याह की कथा-
क्या सचमुच
ऐसी कोई कहानी नहीं है आपके पास ? "
मैं शर्मिंदा हूं/ कहना चाहता हूं,
" सॉरी बेटे
ऐसी कोई कहानी
नहीं आती मुझे… ! "
मेरी पीड़ा
मेरी आंखों से छलकती होगी ..
आप महसूस कर सकते हैं उसे
कहानी
मेरे अंतर में कुलबुलाती है
करवट लेती है
लेकिन .... प्रसव में देर है अभी !
( 1985 )
-सुरेश स्वप्निल
* संभवतः, अप्रकाशित/अप्रसारित रचना। प्रकाशनार्थ उपलब्ध।