यदि उत्सव वर्ष चलते रहते
तो सोचिए
क्या हाल होता
आपके कानों का ?
मां एक भजन गाती थीं
तो दिन-भर
कोई और गीत सुनने का
मन नहीं होता था
कभी लता दी का गाया भजन
ज़ुबान पर आ जाता
तो सारे काम छूट जाते
अधूरे
कभी रफ़ी साहब के भजन
सुनाई दे जाते
तो सारा दिन सफल हो जाता
मन्ना दा
मुकेश जी
सुधा मल्होत्रा जी
हरि ओम शरण ....
कितने अनमोल भजन-गायक होते
एक से एक अनुपम
सीधे आत्मा तक पहुंचते शब्द...
छोड कर
लोग हर बे-सुरे, बे-ताले
फटे बांस जैसी आवाज़ों वाले
पैरोडी-भजन
जबरन आपके कानों में
ठूंस रहे होते हैं
तो सच बताइए,
क्या आपको धर्म के नाम से ही
घिन नहीं होने लगती ???
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.
तो सोचिए
क्या हाल होता
आपके कानों का ?
मां एक भजन गाती थीं
तो दिन-भर
कोई और गीत सुनने का
मन नहीं होता था
कभी लता दी का गाया भजन
ज़ुबान पर आ जाता
तो सारे काम छूट जाते
अधूरे
कभी रफ़ी साहब के भजन
सुनाई दे जाते
तो सारा दिन सफल हो जाता
मन्ना दा
मुकेश जी
सुधा मल्होत्रा जी
हरि ओम शरण ....
कितने अनमोल भजन-गायक होते
एक से एक अनुपम
सीधे आत्मा तक पहुंचते शब्द...
छोड कर
लोग हर बे-सुरे, बे-ताले
फटे बांस जैसी आवाज़ों वाले
पैरोडी-भजन
जबरन आपके कानों में
ठूंस रहे होते हैं
तो सच बताइए,
क्या आपको धर्म के नाम से ही
घिन नहीं होने लगती ???
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.