शनिवार, 28 जून 2014

अगली पीढ़ियों के नाम

भय  नहीं  लगता  हमें  अब
समय  से
संयोग  से
सरकार  से
लाठियों  से
गोलियों  की  मार  से

डर  गए  तो
मुश्किलें  बढ़  जाएंगी  !

हो  चुका  डरना  बहुत  दिन
उम्र  सारी 
कट  गई  प्रतिरोध  में
अन्याय  के
अब  क्या  डरेंगे
मृत्यु  जब  पल-पल 
निकट तर  आ  रही  हो

जिस  तरह  सारे  मरेंगे
उस  तरह  मर  जाएंगे
हम भी

मगर  कह  जाएंगे 
निर्द्वंद  हो  कर
बात  अपनी 
छोड़  जाएंगे  कई  संदेश
अगली  पीढ़ियों  के  नाम  से  !

                                                            (2014)

                                                      -सुरेश स्वप्निल 

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गुरुवार, 26 जून 2014

व्यवस्था के हाथों में...

ठीक  उस  समय
जबकि  अंतिम  सांसें
गिनी  जा  रही  थीं
तलवारें  हटा  ली  गई  हैं
भेड़ों  के  सिर  के  ऊपर  से

यह
वधिक  का  हृदय  परिवर्त्तन  है
अथवा,  और  अधिक  क्रूर  भविष्य  का  संकेत ?

भेड़ें  तय  कर  लें
कि  सब-कुछ  भाग्य  पर  छोड़ना  है
या 
अपने  इच्छित  जीवन  के  लिए
संघर्ष  करना  है

मृत्यु  अंतिम  सत्य  है
निस्संदेह  अपरिहार्य
किंतु,  जीवन  के  लिए
संघर्ष  किया  जा  सकता  है
और  किया  जाना  चाहिए

व्यवस्था  के  हाथों  में
सब-कुछ  छोड़ा  नहीं  जा  सकता
अंततः
जीवन  तो  क़तई  नहीं   !

                                                                  (2014)

                                                           -सुरेश  स्वप्निल 

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बुधवार, 25 जून 2014

भीष्म की अंतिम गति ...

एक  ही  गति  होती  है
हर  महाभारत  में
भीष्म  पितामह  की
बाणों  की  शैया  पर
टिका  हुआ  शरीर
और  हवा  में 
लटकता  हुआ  सिर...

हर  बार  कोई  अर्जुन
प्रकट  होता  रहा  है  अभी  तक
भीष्म  की  मुक्ति  के  लिए
लेकिन
इस  बार  भी  यही  होगा,
संशय  है  इसमें

संस्कार  बदल  दिए  गए  हैं
इस  बार
कौरव-पांडवों  के
अब  कोई  महत्व  नहीं
व्यक्ति  के  पिता  या  पितामह  होने  का !

भीष्म  को  भी 
जाना  ही  होगा
पूर्वजों  के  मार्ग  पर
कहीं  कोई  कुंठा  मन  में
दबी  रह  जाएगी  लेकिन....

कदाचित
इससे  बेहतर  भी  हो  सकती  थी
अंतिम  गति ....!

                                                                            (2014)

                                                                   -सुरेश  स्वप्निल 

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सोमवार, 23 जून 2014

मूर्खता का मूल्य

कभी-कभी
बहुत  पीड़ा  होती  है
जब  आप  बहुत  सदाशयता  पूर्वक
किसी  को  रोकते  हैं
गड्ढे  में  गिरने  से
और  वह  कूद  जाता  है
नीचे
बिना  आपकी  सदाशयता  पर
विश्वास  किए  !

वैसे,  सच  कहा  जाए  तो
यही  तो  किया  है
आपने  भी  !

बार-बार  रोकने  के  बाद  भी
आ  ही  गए  आप
आदमख़ोरों  की  चालों  में
और  कूद  गए  गड्ढे  में  !

अब  सहलाते  रहिए  अपने  घाव
भुगतते  रहिए  दिन-प्रतिदिन
शरीर  और  मन  पर
पड़ने  वाली  चोटों  को  !

हमें  अब  कुछ  नहीं  कहना  है  आपसे
कम  से  कम  अगले  पांच  वर्ष  तक

पांच  वर्ष  बहुत  अधिक  नहीं  होते
मूर्खता  का  मूल्य  चुकाने  के  लिए
और  काम  भी  नहीं  होते
जन-विरोधी  सत्ता  को
उखाड़  फेंकने  के  लिए  !

                                                                       (2014)

                                                               -सुरेश  स्वप्निल

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शुक्रवार, 20 जून 2014

तब मेरी दंतकथाएं

आप  चाहें
तो  जुबां  काट  दें  मेरी
मगर  चुप  नहीं  रहूंगा  मैं

ज़ुबां  कट  गई
तो  मैं 
अपनी  अंगुलियों  के
इशारों  से  कहूंगा
लिख-लिख  कर
आसमान  सर  पर  उठा  लूंगा
तब  क्या  करेंगे  आप  ?

आप  चाहें  तो
मेरी  अंगुलियां  भी  काट  दें
तब  मैं 
अपनी  निगाहों  से  बात  करूंगा
वह  शायद  आपको
बहुत  भारी  पड़ेगा

आप  चाहें  तो  मेरे
सारे  अंग  छिन्न-भिन्न  कर  दें
मगर  तब  भी
मैं  संवाद  का
कोई  न  कोई   ज़रिया
ढूंढ  ही  लूंगा

मुझे  मौन  करने  का
एक  ही  रास्ता  है  आपके  पास
मेरी  हत्या  कर  देना …

मगर 
तब  मेरी  दंतकथाएं
पीछा  नहीं  छोड़ेंगी  आपका
सात  जन्म  तक
पीढ़ी  दर  पीढ़ी  !

                                                       (2014)

                                                -सुरेश  स्वप्निल

गुरुवार, 19 जून 2014

चुप रहना ...!

बेशक़
बहुत  कुछ  पाया  जा  सकता  है
चुप  रह  कर
मसलन,  सरकारी नौकरी,
गाड़ी,  बंगला,
यश,  प्रतिष्ठा,  सम्मान
और  पुरस्कार...

बेशक़,  बचा  जा  सकता  है
चुप  रह  कर 
तमाम  मुसीबतों  से
जैसे,  पुलिस
सीबीआई,  इनकम  टैक्स,
फ़र्ज़ी  मुठभेड़ ....

बेशक़,  आत्म-हत्या  का 
एक  बेहतर  तरीक़ा  है
सब-कुछ  देखते-सुनते  हुए  भी 
चुप  रहना !

                                                      (2014)

                                                -सुरेश  स्वप्निल

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