देश है
तो नागरिक भी होंगे
नागरिक होंगे
तो सरकार भी होगी
सरकार होगी
तो सेना भी होगी
और पुलिस भी
सवाल यह है कि
नागरिक, सरकार, सेना
और पुलिस के अंतर्संबंध
कौन परिभाषित करता है ?
यदि ये सम्बंध पूँजी निर्धारित करती है
तो समझ लें, जनता की ख़ैर नहीं
यदि पूँजी विदेशी भी है
तो जनता के साथ-साथ
प्राकृतिक संसाधनों की भी ख़ैर नहीं
और यदि किसी देश में लोकतंत्र है
और नागरिक, सरकार, सेना और पुलिस के
अंतर्संबंध पूँजी निर्धारित करती है
और वह पूँजी अमेरिकी है
तो समझ लें,
उस देश की ही ख़ैर नहीं
और साथ-साथ
पास-पड़ोस के देशों की भी ख़ैर नहीं !
अमेरिकी पूँजी के आक़ाओं के इशारों पर
आपकी-अपनी सरकार
आपकी-अपनी सरकार की सेनाएं
और पुलिस
कब आप पर गोलियां चलवा दे
कुछ नहीं कहा जा सकता ,,,,
यदि आप एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं
जिसकी सरकार अमेरिकी आक़ाओं के इशारों पर
काम करती है
और अपने ही नागरिकों पर दमन-चक्र चलाती है
आप दमन के शिकार होते रहते हैं
निरंतर
और कभी विरोध में उठ कर
खड़े नहीं होते
तो क्षमा करें श्रीमान
अपने मनुष्य होने के बारे में
फिर सोचें एक बार…. !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
तो नागरिक भी होंगे
नागरिक होंगे
तो सरकार भी होगी
सरकार होगी
तो सेना भी होगी
और पुलिस भी
सवाल यह है कि
नागरिक, सरकार, सेना
और पुलिस के अंतर्संबंध
कौन परिभाषित करता है ?
यदि ये सम्बंध पूँजी निर्धारित करती है
तो समझ लें, जनता की ख़ैर नहीं
यदि पूँजी विदेशी भी है
तो जनता के साथ-साथ
प्राकृतिक संसाधनों की भी ख़ैर नहीं
और यदि किसी देश में लोकतंत्र है
और नागरिक, सरकार, सेना और पुलिस के
अंतर्संबंध पूँजी निर्धारित करती है
और वह पूँजी अमेरिकी है
तो समझ लें,
उस देश की ही ख़ैर नहीं
और साथ-साथ
पास-पड़ोस के देशों की भी ख़ैर नहीं !
अमेरिकी पूँजी के आक़ाओं के इशारों पर
आपकी-अपनी सरकार
आपकी-अपनी सरकार की सेनाएं
और पुलिस
कब आप पर गोलियां चलवा दे
कुछ नहीं कहा जा सकता ,,,,
यदि आप एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं
जिसकी सरकार अमेरिकी आक़ाओं के इशारों पर
काम करती है
और अपने ही नागरिकों पर दमन-चक्र चलाती है
आप दमन के शिकार होते रहते हैं
निरंतर
और कभी विरोध में उठ कर
खड़े नहीं होते
तो क्षमा करें श्रीमान
अपने मनुष्य होने के बारे में
फिर सोचें एक बार…. !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल