दिन-दिन दूना रात चौगुना फैले भ्रष्टाचार
जागे न जागे न जागे सोई है सरकार
अजब दिन आए रे भैया ..
पुल टूटा पहली वर्षा में नहर न देती पानी
राहत के चावल भी सड़ियल किसकी कारस्तानी
चोर-सिपाही-अफ़सर-तस्कर-डाकू-थानेदार
सब के सब मौसेरे भाई इनसे क्या दरकार
जागे न जागे न जागे सोई है सरकार
अजब दिन आए रे भैया !
राजा मांगे शाल-दुशाले रानी मांगे सोना
जनता भूखी मांगे दाना सबका अपना रोना
डिग्री माथे पर चिपकाए फिरते हैं बेकार
बिना घूस के घास न मिलती घोड़े तक बेज़ार
जागे न जागे न जागे सोई है सरकार
अजब दिन आए रे भैया
अजब दिन आए रे भैया
अजब दिन आए रे भैया !
( 1988 )
-सुरेश स्वप्निल
* नोबेल पुरस्कार-प्राप्त इटैलियन नाटक-कार डारियो-फ़ो के विश्व-विख्यात नाटक ' नेकेड किंग ' के
श्री सतीश शर्मा द्वारा किये गए बघेली रूपांतरण ' ठाढ़ दुआरे नंगा ' के कवि द्वारा निर्देशित मंचन हेतु
विशेष रूप से लिखा गया गीत। प्रकाशन हेतु अनुपलब्ध।
जागे न जागे न जागे सोई है सरकार
अजब दिन आए रे भैया ..
पुल टूटा पहली वर्षा में नहर न देती पानी
राहत के चावल भी सड़ियल किसकी कारस्तानी
चोर-सिपाही-अफ़सर-तस्कर-डाकू-थानेदार
सब के सब मौसेरे भाई इनसे क्या दरकार
जागे न जागे न जागे सोई है सरकार
अजब दिन आए रे भैया !
राजा मांगे शाल-दुशाले रानी मांगे सोना
जनता भूखी मांगे दाना सबका अपना रोना
डिग्री माथे पर चिपकाए फिरते हैं बेकार
बिना घूस के घास न मिलती घोड़े तक बेज़ार
जागे न जागे न जागे सोई है सरकार
अजब दिन आए रे भैया
अजब दिन आए रे भैया
अजब दिन आए रे भैया !
( 1988 )
-सुरेश स्वप्निल
* नोबेल पुरस्कार-प्राप्त इटैलियन नाटक-कार डारियो-फ़ो के विश्व-विख्यात नाटक ' नेकेड किंग ' के
श्री सतीश शर्मा द्वारा किये गए बघेली रूपांतरण ' ठाढ़ दुआरे नंगा ' के कवि द्वारा निर्देशित मंचन हेतु
विशेष रूप से लिखा गया गीत। प्रकाशन हेतु अनुपलब्ध।