मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

कितना कठिन होता है

होता तो बहुत कुछ है मन में
लेकिन  पूरा  कहां  होता  है  अक्सर
मन  का सोचा  हुआ  ?

मसलन,  देश  और  समाज  के  प्रति
अपना  कर्त्तव्य-बोध
माता-पिता  के  लिए
अपूरित  इच्छाओं  का  बोझ
संतान  के  लिए  चिंताएं
और  उनके  लिए  बनाई  गई

तमाम  योजनाएं....

एक  मध्यम-वर्गीय  भारतीय  के  लिए
कितना  कठिन  होता है
उम्र  भर  अपने-आप  को
नेक  रास्ते  पर 
चलाते  रहना...

काश !  सरकारें  समझ  पातीं
कि  यदि
जनता  के  मन  में  दबे  हुए  ज्वालामुखी 

फट  जाएं  किसी  दिन
तो  कैसी  प्रलय  आ  सकती  है
देश  में  !

                                                        (2013 )

                                              -सुरेश  स्वप्निल