होता तो बहुत कुछ है मन में
लेकिन पूरा कहां होता है अक्सर
मन का सोचा हुआ ?
मसलन, देश और समाज के प्रति
अपना कर्त्तव्य-बोध
माता-पिता के लिए
अपूरित इच्छाओं का बोझ
संतान के लिए चिंताएं
और उनके लिए बनाई गई
तमाम योजनाएं....
एक मध्यम-वर्गीय भारतीय के लिए
कितना कठिन होता है
उम्र भर अपने-आप को
नेक रास्ते पर
चलाते रहना...
काश ! सरकारें समझ पातीं
कि यदि
जनता के मन में दबे हुए ज्वालामुखी
फट जाएं किसी दिन
तो कैसी प्रलय आ सकती है
देश में !
(2013 )
-सुरेश स्वप्निल
लेकिन पूरा कहां होता है अक्सर
मन का सोचा हुआ ?
मसलन, देश और समाज के प्रति
अपना कर्त्तव्य-बोध
माता-पिता के लिए
अपूरित इच्छाओं का बोझ
संतान के लिए चिंताएं
और उनके लिए बनाई गई
तमाम योजनाएं....
एक मध्यम-वर्गीय भारतीय के लिए
कितना कठिन होता है
उम्र भर अपने-आप को
नेक रास्ते पर
चलाते रहना...
काश ! सरकारें समझ पातीं
कि यदि
जनता के मन में दबे हुए ज्वालामुखी
फट जाएं किसी दिन
तो कैसी प्रलय आ सकती है
देश में !
(2013 )
-सुरेश स्वप्निल