शनिवार, 7 सितंबर 2013

प्रवचन की दूकान !

आओ  मिल  कर  लूट  मचाएं

अच्छी-ख़ासी  भीड़  लगी  है
अंधे-बहरे-गूंगे-काने
भक्त-जनों  को  मूर्ख  बनाएं
हाथ-सफाई  से  काग़ज़  को  नोट  बनाएं
ताज़े-ताज़े  लड्डू-पेड़े
आस्तीन  को  हिला-डुला  कर
मिट्टी  को  प्रसाद  बना  कर
अपनी  जय-जयकार  कराएं
ज्ञान-तर्क  की  धूल  उड़ा  कर
कीड़ों  को  भगवान  बनाएं

धर्म-ग्रंथ  में  क्या  लिक्खा  है
अच्छे-अच्छे  पढ़े-लिखे  भी  नहीं  जानते
चाहे  जो  भी  गढ़ो  कहानी
कुछ  भी  उल्टा-सीधा  बक  दो
भक्त-जनों  में  अक़्ल  कहां  है ?
तुम  मत  मांगो
लोग  मगर  फिर  भी  दे  देंगे
तुम  बस  उनको  शिष्य  बनाओ
चाहे  जैसी  दीक्षा  बांटो
चाहे  जो  गुरु-मंत्र  बता  दो  …

डायबिटीज़  की  दवा  बता  कर
रसगुल्ले  की  मांग  बढ़ाओ
लौकी-कद्दू  के  नुस्ख़े  से
जम  कर  अपनी  चांदी  काटो
दोनों  हाथों  लूट-लूट  कर
भक्तों  को  कंगाल  बनाओ
दाढ़ी-भगवा-पगड़ी  का  उपयोग  सीख  लो
'वैदिक'  का  बाज़ार  बनाओ
संस्कृति   में  आग  लगाओ…

उफ़ ! यह  इतना  छोटा  जीवन  !
करने  को  है  इतना-सारा
धर्म  और  ईमान  भूल  कर
नोट  कमाओ  ढेर  लगाओ
सात  पुश्त  की  करो  व्यवस्था
यहां-वहां  गुरुकुल  खुलवा  दो
नेताओं  को  शिष्य  बना  कर
क़ानूनों  को  धता  बताओ

कहां  लगे  हो ?
बच्चों  को  बाबा  बनने  के
गुर  सिखलाओ….

अपने  दोनों  लोक  संवारो
सातों  जन्म  सफल  कर  डालो
काम-धाम  सब  छोड़-छाड़  कर
प्रवचन  की  दूकान  चलाओ
नोट  कमाओ
भारत  का  सम्मान  बढ़ाओ  !

                                          ( 2013 )

                                    -सुरेश  स्वप्निल