भविष्य के गर्त्त में
छिपे हैं
न जाने कितने गहन अंधकार
अनगिनत झंझावात
भूकम्प
और जल-प्लावन …
समय निर्मम हो रहा है
मनुष्यता के प्रति
जैसे कि प्रतिशोध ले रहा हो
मनुष्य से
महान धरा और प्रकृति के
अपमान का
जिन्हें चिंता होनी चाहिए
वे ही उत्तरदायी हैं
वर्त्तमान और भावी
महाविनाश के
कहने को
सारी सभ्यताएं
सारी संस्कृतियां
और सारे देश
स्वतंत्र और संप्रभु
लगे हुए हैं
इनी-गिनी महाशक्तियों की
चाटुकारी में....
आख़िर किस आशा में
जी रहे हैं देश
किस क्रांति या प्रति-क्रांति की
प्रतीक्षा में ???
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
…
छिपे हैं
न जाने कितने गहन अंधकार
अनगिनत झंझावात
भूकम्प
और जल-प्लावन …
समय निर्मम हो रहा है
मनुष्यता के प्रति
जैसे कि प्रतिशोध ले रहा हो
मनुष्य से
महान धरा और प्रकृति के
अपमान का
जिन्हें चिंता होनी चाहिए
वे ही उत्तरदायी हैं
वर्त्तमान और भावी
महाविनाश के
कहने को
सारी सभ्यताएं
सारी संस्कृतियां
और सारे देश
स्वतंत्र और संप्रभु
लगे हुए हैं
इनी-गिनी महाशक्तियों की
चाटुकारी में....
आख़िर किस आशा में
जी रहे हैं देश
किस क्रांति या प्रति-क्रांति की
प्रतीक्षा में ???
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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