चलो, ऐसा करके देखते हैं
कि आज पूरी तरह से मनुष्य बनें
और अपने सारे सुख
सारी संपत्तियां उनमें बांट दें
जिन्हें उनकी सचमुच ज़रूरत है
एक दिन, केवल एक दिन
निर्गुण-निर्विकार रह कर
अनुभव करें
उन अभागे मनुष्यों की पीड़ा
जो संभवतः हमसे भी कठिन
परिस्थितियों में जी रहे हैं
शायद हम बहुत सुखी हैं
करोड़ों-अरबों मनुष्यों की तुलना में
लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम
कोशिश छोड़ दें
अपना और अपने से अधिक दुखी मनुष्यों का
जीवन
बेहतर बनाने की ...!
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
कि आज पूरी तरह से मनुष्य बनें
और अपने सारे सुख
सारी संपत्तियां उनमें बांट दें
जिन्हें उनकी सचमुच ज़रूरत है
एक दिन, केवल एक दिन
निर्गुण-निर्विकार रह कर
अनुभव करें
उन अभागे मनुष्यों की पीड़ा
जो संभवतः हमसे भी कठिन
परिस्थितियों में जी रहे हैं
शायद हम बहुत सुखी हैं
करोड़ों-अरबों मनुष्यों की तुलना में
लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम
कोशिश छोड़ दें
अपना और अपने से अधिक दुखी मनुष्यों का
जीवन
बेहतर बनाने की ...!
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल