हो सकता है
कुछ लोग इसे
मात्र एक अफ़वाह समझें
मगर यह सच है
शत-प्रतिशत
कि हमारे शहर में आज भी
सितम्बर के शुरू में तितलियाँ
हर साल आती हैं !
वे कभी हमारे शहर से
नाराज़ नहीं हुईं
हमारे शहर में
कौव्वे भी आते हैं
श्राद्ध-पक्ष में पूर्वजों की भाँति
और ग्रहण करते हैं
अपना अर्घ्य !
गौरैयां ?
वे तो अब भी
लगभग हर घर के आँगन में
नज़र आ ही जाती हैं
दाने मांगते हुए
और घोंसले बनाते हुए।
वैसे मनुष्यता भी जीवित है
हमारे शहर में
शहर-भर में फैली
हरियाली की तरह …।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.
कुछ लोग इसे
मात्र एक अफ़वाह समझें
मगर यह सच है
शत-प्रतिशत
कि हमारे शहर में आज भी
सितम्बर के शुरू में तितलियाँ
हर साल आती हैं !
वे कभी हमारे शहर से
नाराज़ नहीं हुईं
हमारे शहर में
कौव्वे भी आते हैं
श्राद्ध-पक्ष में पूर्वजों की भाँति
और ग्रहण करते हैं
अपना अर्घ्य !
गौरैयां ?
वे तो अब भी
लगभग हर घर के आँगन में
नज़र आ ही जाती हैं
दाने मांगते हुए
और घोंसले बनाते हुए।
वैसे मनुष्यता भी जीवित है
हमारे शहर में
शहर-भर में फैली
हरियाली की तरह …।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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