वे जो मार डाले गए
ज़हर मिला खाना खिला कर
वे तुम्हारे बच्चे नहीं थे न !
वे तो मनुष्य भी नहीं थे शायद
सड़े-गले जानवरों का मांस
और तुम्हारी जूठन पर
जीवित रहने वाले
चूहे खाने वाले
मुसहर कहीं के !
तुम्हारी कृपा न होती
तो जान पाते क्या वे
गेहूं की रोटी
और अरहर की दाल का स्वाद ?
हम भी कितने कृतघ्न हैं
कि संदेह कर रहे हैं
तुम्हारी दयालुता पर !
अच्छा, जो बच्चे मर गए
एक समय के भोजन के लालच में
वे जीवित रहते तो क्या करते ?
अंततः, बंधुआ ही तो बनते तुम्हारे !
अच्छा हुआ
जो मार डाला तुमने
ज़हर खिला कर
मुक्त तो हुए
जीवन-भर की दरिद्रता
और रोज़ी-रोटी की चिंता से !
जो कुछ भी हुआ
अच्छा ही हुआ
वे क्या पढ़-लिख कर
प्रधानमंत्री बन जाते !
मत रोओ उनके नाम पर
महा मूर्खों !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
ज़हर मिला खाना खिला कर
वे तुम्हारे बच्चे नहीं थे न !
वे तो मनुष्य भी नहीं थे शायद
सड़े-गले जानवरों का मांस
और तुम्हारी जूठन पर
जीवित रहने वाले
चूहे खाने वाले
मुसहर कहीं के !
तुम्हारी कृपा न होती
तो जान पाते क्या वे
गेहूं की रोटी
और अरहर की दाल का स्वाद ?
हम भी कितने कृतघ्न हैं
कि संदेह कर रहे हैं
तुम्हारी दयालुता पर !
अच्छा, जो बच्चे मर गए
एक समय के भोजन के लालच में
वे जीवित रहते तो क्या करते ?
अंततः, बंधुआ ही तो बनते तुम्हारे !
अच्छा हुआ
जो मार डाला तुमने
ज़हर खिला कर
मुक्त तो हुए
जीवन-भर की दरिद्रता
और रोज़ी-रोटी की चिंता से !
जो कुछ भी हुआ
अच्छा ही हुआ
वे क्या पढ़-लिख कर
प्रधानमंत्री बन जाते !
मत रोओ उनके नाम पर
महा मूर्खों !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें