उम्र उड़ रही है
गर्म तवे पर पड़ी
पानी की बूंद की तरह
स्वप्न बदलते जा रहे हैं
अति-कठोर जीवाश्मों में
जिन्हें तोड़ पाना
असम्भव है नितांत
समय
इतना निर्मम कैसे हो सकता है
किसी मनुष्य के लिए….
मैं जीना चाहता हूं
विशुद्ध वर्त्तमान में
जिसमें शामिल न हो
अतीत या भविष्य का कोई भी चिह्न…
मेरा समय मुझे पा लेने दो
मेरा वर्त्तमान !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.
गर्म तवे पर पड़ी
पानी की बूंद की तरह
स्वप्न बदलते जा रहे हैं
अति-कठोर जीवाश्मों में
जिन्हें तोड़ पाना
असम्भव है नितांत
समय
इतना निर्मम कैसे हो सकता है
किसी मनुष्य के लिए….
मैं जीना चाहता हूं
विशुद्ध वर्त्तमान में
जिसमें शामिल न हो
अतीत या भविष्य का कोई भी चिह्न…
मेरा समय मुझे पा लेने दो
मेरा वर्त्तमान !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.