श्री देव चंद
मुकाम-पोस्ट गुनगा
तहसील बैरसिया निवासी
शहर भोपाल में कर्फ़्यू के दौरान
लाठियों से पिटे
पिटे
लाठियों से पिटे
लेकिन यह ख़बर अख़बारों के लायक़
नहीं थी
पिटते वक़्त उनके कंधे पर कम्बल था
और एक झोला
झोले में दरी
और पुराने अख़बार में लिपटे
आठ-दस परांठे
और तली हुई हरी मिर्चें
अंटी में तेरह रुपये पचास पैसे भी थे
कर्फ़्यू से बेख़बर
निकले थे काम की तलाश में
स्पेशल ट्रेन से
दिल्ली पहुंचने की आस में ...
ग्राम गुनगा निवासी
श्री देव चंद
भाग्यशाली थे
उनकी दरी सही-सलामत रही
उनका कम्बल या झोला
नहीं छीना गया
उनके परांठे और हरी मिर्चें
किसी ने देखे तक नहीं
वे कर्फ़्यू के उल्लंघन में जेल नहीं गए
सिर्फ़ पिटे
और तेरह रुपये पचास पैसे
उनकी अंटी से खिसक गए।
( 1984 )
-सुरेश स्वप्निल
* सच्ची घटना, श्री देव चंद कवि के सहपाठी और मित्र थे। यह वाक़या 1984 में
सुश्री इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद शहर भोपाल में लगाए गए कर्फ़्यू के समय का।
* * प्रकाशन: 'आवेग', रतलाम एवं अन्यत्र भी। पुनः प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
मुकाम-पोस्ट गुनगा
तहसील बैरसिया निवासी
शहर भोपाल में कर्फ़्यू के दौरान
लाठियों से पिटे
पिटे
लाठियों से पिटे
लेकिन यह ख़बर अख़बारों के लायक़
नहीं थी
पिटते वक़्त उनके कंधे पर कम्बल था
और एक झोला
झोले में दरी
और पुराने अख़बार में लिपटे
आठ-दस परांठे
और तली हुई हरी मिर्चें
अंटी में तेरह रुपये पचास पैसे भी थे
कर्फ़्यू से बेख़बर
निकले थे काम की तलाश में
स्पेशल ट्रेन से
दिल्ली पहुंचने की आस में ...
ग्राम गुनगा निवासी
श्री देव चंद
भाग्यशाली थे
उनकी दरी सही-सलामत रही
उनका कम्बल या झोला
नहीं छीना गया
उनके परांठे और हरी मिर्चें
किसी ने देखे तक नहीं
वे कर्फ़्यू के उल्लंघन में जेल नहीं गए
सिर्फ़ पिटे
और तेरह रुपये पचास पैसे
उनकी अंटी से खिसक गए।
( 1984 )
-सुरेश स्वप्निल
* सच्ची घटना, श्री देव चंद कवि के सहपाठी और मित्र थे। यह वाक़या 1984 में
सुश्री इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद शहर भोपाल में लगाए गए कर्फ़्यू के समय का।
* * प्रकाशन: 'आवेग', रतलाम एवं अन्यत्र भी। पुनः प्रकाशन हेतु उपलब्ध।