शत्रुओं के रक्त की प्यास
क्या इतनी अमानवीय होती है
कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी
खोखला करती चली जाए
मनुष्य के गुण-सूत्रों को
और फिर भी
अतृप्त ही रह जाए ???
मुझे विश्वास है
कि मेरी ही भांति
आपमें से अधिकांश
जूझ रहे होंगे इसी प्रश्न से....
यहीं कहीं है वह
पवित्र बोधि-वृक्ष
जिसकी छाँह में बैठ कर
सिद्धार्थ गौतम बन जाते हैं
गौतम बुद्ध
यहीं कहीं है
वह लिच्छवियों की राजधानी
जिसका भावी शासक
सर्वस्व त्याग कर
हो जाता है दिगंबर
यहीं है वह कलिंग का युद्ध-क्षेत्र
जहां शत्रुओं के शव देख कर
सम्राट अपना राज-पाट छोड़ कर
धर्म का शरणागत हो जाता है…
अरे हां,
पवित्र साबरमती तो
तुम्हारे घर के आसपास ही
बहती है न कहीं ???
यदि इतने उदाहरण सामने होते हुए भी
अतृप्त है
तुम्हारी मानव-रक्त की तृष्णा
तो मैं तैयार नहीं हूं
यह मानने को
कि तुम और मैं
एक ही देश
एक ही धर्म
एक ही प्रजाति के जीव हैं !
तुम अपनी सेनाएं ले आओ
मैं तुम्हें अस्वीकार करता हूं
अपने प्रतिनिधि के रूप में !!!
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.
क्या इतनी अमानवीय होती है
कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी
खोखला करती चली जाए
मनुष्य के गुण-सूत्रों को
और फिर भी
अतृप्त ही रह जाए ???
मुझे विश्वास है
कि मेरी ही भांति
आपमें से अधिकांश
जूझ रहे होंगे इसी प्रश्न से....
यहीं कहीं है वह
पवित्र बोधि-वृक्ष
जिसकी छाँह में बैठ कर
सिद्धार्थ गौतम बन जाते हैं
गौतम बुद्ध
यहीं कहीं है
वह लिच्छवियों की राजधानी
जिसका भावी शासक
सर्वस्व त्याग कर
हो जाता है दिगंबर
यहीं है वह कलिंग का युद्ध-क्षेत्र
जहां शत्रुओं के शव देख कर
सम्राट अपना राज-पाट छोड़ कर
धर्म का शरणागत हो जाता है…
अरे हां,
पवित्र साबरमती तो
तुम्हारे घर के आसपास ही
बहती है न कहीं ???
यदि इतने उदाहरण सामने होते हुए भी
अतृप्त है
तुम्हारी मानव-रक्त की तृष्णा
तो मैं तैयार नहीं हूं
यह मानने को
कि तुम और मैं
एक ही देश
एक ही धर्म
एक ही प्रजाति के जीव हैं !
तुम अपनी सेनाएं ले आओ
मैं तुम्हें अस्वीकार करता हूं
अपने प्रतिनिधि के रूप में !!!
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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