हम 'प्रजा' नहीं किसी की
न तुम राजा या सम्राट हमारे
हम हैं 'लोक'
संप्रभु, स्वायत्त नागरिक !
हम पर 'राज' करने के सपने
मत देखो, मूर्खाधिराज !
सिर्फ़ 'सेवक' हो तुम हमारे
वेतन-प्राप्त करने वाले
पांच वर्ष की संविदा पर नियुक्त
साधारण कर्मचारी !
संविदा समाप्त
तुम्हारी नौकरी भी समाप्त !
अगली बार
हमारा 'मत' मांगने आओ
तो ध्यान रखना
अगली बार तुम्हारे वचन-भंग
तो तुम्हारा छत्र भी भंग !
जाओ, ज़्यादा शोर मत करो
दो टके के भिखारी
मक्कारों !
बहुत-से काम करने हैं हमें
तुम्हारा दोज़ख़ भरने को भी !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
न तुम राजा या सम्राट हमारे
हम हैं 'लोक'
संप्रभु, स्वायत्त नागरिक !
हम पर 'राज' करने के सपने
मत देखो, मूर्खाधिराज !
सिर्फ़ 'सेवक' हो तुम हमारे
वेतन-प्राप्त करने वाले
पांच वर्ष की संविदा पर नियुक्त
साधारण कर्मचारी !
संविदा समाप्त
तुम्हारी नौकरी भी समाप्त !
अगली बार
हमारा 'मत' मांगने आओ
तो ध्यान रखना
अगली बार तुम्हारे वचन-भंग
तो तुम्हारा छत्र भी भंग !
जाओ, ज़्यादा शोर मत करो
दो टके के भिखारी
मक्कारों !
बहुत-से काम करने हैं हमें
तुम्हारा दोज़ख़ भरने को भी !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल