अंधियारे ने
फिर फैलाया
उजियारे पर
अपना जादू
ज़हर भरा है नभ के मन में
रात अभी भी काली है
दीपक तले अंधेरा छाया
यह कैसी दीवाली है ?
धरती के
बेटों ने चाहा
अंबर के
तारे तोड़ें, पर
हाथ लगे माटी के दीपक
क़िस्मत उनकी काली है
उजियारे के
भ्रम में जीना
कोई अच्छी
बात नहीं
टिमटिम करते इस दीपक की
लौ बुझने ही वाली है !
(दीपावली, 1979)
-सुरेश स्वप्निल
...
फिर फैलाया
उजियारे पर
अपना जादू
ज़हर भरा है नभ के मन में
रात अभी भी काली है
दीपक तले अंधेरा छाया
यह कैसी दीवाली है ?
धरती के
बेटों ने चाहा
अंबर के
तारे तोड़ें, पर
हाथ लगे माटी के दीपक
क़िस्मत उनकी काली है
उजियारे के
भ्रम में जीना
कोई अच्छी
बात नहीं
टिमटिम करते इस दीपक की
लौ बुझने ही वाली है !
(दीपावली, 1979)
-सुरेश स्वप्निल
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