वह जो जंगल है तुम्हारी नज़र में
वह जिस दिन आगे बढ़ेगा
तुम्हारे क़िले-नुमां महल की तरफ़
और उतर जाएगा तुम्हारी धमनियों में
पारा बन कर
उस दिन मारे जाओगे तुम
मारे जाओगे, तानाशाह
वैदिक ऋचाओं से अग्नि प्रज्ज्वलित कर
निर्दोष मानव-रक्त-मांस की आहुतियां
ब्रह्म-राक्षसों को जगाने वाले
मद-अंध अघोरी
तुम्हें पता है
जंगल की शक्ति ?
तय है कि जंगल आएगा ही
तुम्हारे दरवाज़े
तुम्हारी 'फ़ूल-प्रूफ़' सुरक्षा-प्रणालियों को
नेस्त-नाबूद करता
-उसकी तेजाबी तरलता अबंध्य है
गर्म लावे की तरह
जंगल एक प्रश्न है
चार वेद, अठारह पुराण
और असंख्य स्मृति-संहिता-उपनिषद्
धर्म शास्त्रों के समक्ष
और अकेला जवाब
तुम्हारे तीर-तलवार-त्रिशूल
तुम्हारी परमाणु-क्षमता
और नाभिकीय बमों का
-तुम्हारी निर्लज्ज राज्य-लिप्सा
तुम्हारी वीभत्स युयुत्सा का
वह जो जंगल है तुम्हारे सामने
वह तुम्हें छोड़ेगा नहीं !
( 03.03.2002 )
-सुरेश स्वप्निल
* गुजरात में दंगों के बाद लिखी गई। शेक्स्पियर के नाटक 'मैकबेथ' से प्रेरित।
** अप्रकाशित/अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
वह जिस दिन आगे बढ़ेगा
तुम्हारे क़िले-नुमां महल की तरफ़
और उतर जाएगा तुम्हारी धमनियों में
पारा बन कर
उस दिन मारे जाओगे तुम
मारे जाओगे, तानाशाह
वैदिक ऋचाओं से अग्नि प्रज्ज्वलित कर
निर्दोष मानव-रक्त-मांस की आहुतियां
ब्रह्म-राक्षसों को जगाने वाले
मद-अंध अघोरी
तुम्हें पता है
जंगल की शक्ति ?
तय है कि जंगल आएगा ही
तुम्हारे दरवाज़े
तुम्हारी 'फ़ूल-प्रूफ़' सुरक्षा-प्रणालियों को
नेस्त-नाबूद करता
-उसकी तेजाबी तरलता अबंध्य है
गर्म लावे की तरह
जंगल एक प्रश्न है
चार वेद, अठारह पुराण
और असंख्य स्मृति-संहिता-उपनिषद्
धर्म शास्त्रों के समक्ष
और अकेला जवाब
तुम्हारे तीर-तलवार-त्रिशूल
तुम्हारी परमाणु-क्षमता
और नाभिकीय बमों का
-तुम्हारी निर्लज्ज राज्य-लिप्सा
तुम्हारी वीभत्स युयुत्सा का
वह जो जंगल है तुम्हारे सामने
वह तुम्हें छोड़ेगा नहीं !
( 03.03.2002 )
-सुरेश स्वप्निल
* गुजरात में दंगों के बाद लिखी गई। शेक्स्पियर के नाटक 'मैकबेथ' से प्रेरित।
** अप्रकाशित/अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु उपलब्ध।