शनिवार, 31 अगस्त 2013

नाश होगा पूंजीवाद का

अमेरिका  में  हवा  चलती  है
रुपया  गिर  जाता  है
अमेरिका  में  हवा  नहीं  चलती
रुपया  गिर  जाता  है
अमेरिका  में  सर्दी, गर्मी, बरसात …
कोई  भी  मौसम  आए  या  जाए
रुपया  गिर-गिर  पड़ता  है…

जब-जब  रुपया  ग़ोता  लगाता  है
निवेशक  ख़ुश  होते  हैं
टाटा-बिरला-अम्बानी-अडानी-नारायण  मूर्ति
सब  के  सब  जश्न  मनाते  हैं
प्रधानमंत्री  को  'मिठाई'  भेजते  हैं
और  सारे  दलों  को  चुनाव  के  लिए  चंदा …

वाह !  क्या  शानदार  लोकतंत्र  है
जहां  संसद  में  चिंता  होती  है
और  नेताओं  के  घर  में  जश्न…

चुनाव  हालांकि  बहुत  दूर  हैं  अभी
शायद  कई  बरस  या  दशक  दूर
मगर  जनता  का  धैर्य  चुकने  लगा  है

जिस  दिन  धैर्य  टूट  गया  अवाम  का
उस  दिन
किसी  को  नहीं  पता
कि  अमेरिका  की  नौकरी  बजाने  वाले
पूंजीपतियों  की  दलाली  करने  वाले
नेता-अभिनेता-डाकू-तस्करों-अफ़सरों  का
क्या  हाल  करेंगे  लोग…

अवाम  को  कमज़ोर  मत  समझो
जिस  दिन  अवाम  सर  उठाएगी
उस  दिन  दुनिया  की  तमाम  सरकारें
और  उनके  दलाल
भीख  मांगते  फिरेंगे  जान-माल  की

जिस  दिन  रुपया  अपनी  पर  आएगा
उस  दिन
डॉलर,  पौंड,  दीनार  और  दिरहम
सब  धूल  चाटते  नज़र  आएंगे

उस  दिन  नाश  होगा  पूंजीवाद  का
आर्थिक  आतंकवाद  और  उपनिवेश वाद  का…

वह  दिन  चाहे  जितना  दूर  लगे
बेहद  पास  है !

                                                                     ( 2013 )

                                                             -सुरेश  स्वप्निल 


मंगलवार, 27 अगस्त 2013

बस, हमारा कन्हैया !

हमें  चाहिए
बस,  हमारा  कन्हैया !

ज़रा  सांवला
मेघ  जैसा  सुयाचित
नयन  सूर्य  के  तेज  से  जगमगाते
वदन  चन्द्रमा  ज्यों
शरद  पूर्णिमा  का
स्निग्ध  स्नेह-अमृत  से
पूरित-प्रकशित…

बड़ी  देर  से  हम  उसे  ढूंढते  हैं
कहां  है,  कहां  है
हमारा  कन्हैया ???

बड़ा  प्यारा-प्यारा
सभी  का  दुलारा
यशोदा  की  आंखों  का  तारा  कन्हैया !

ज़रा  अपने  आंगन  में  उठ  कर  तो  आओ
वो  देखो,  वो  देखो
मचलता,  ठिठकता,  कभी  डगमगाता
न  जाने  कहां  से  ये  माखन  चुरा  के
हथेली  से  मुख  तक  सभी  अंग  साने
बड़े  ढीठपन  से
कभी  खिलखिलाता,  कभी  मुस्कुराता
चला  आ  रहा  है
हृदय  का  सहारा
हमारा  कन्हैया !

कोई  उसका  मुख,  हाथ-पांव  धुलाओ
ये  घुंघराली  अलकें  सहेजो-संवारो
मुकुट  मोरपंखी  धरो  शीश  पर
एक  छोटी  सी  दिठिया  लगाओ
फिर  हाथों  में  स्वर-धन्य  बंसी  थमाओ ….

ज़रा  यूं  सजाओ
कि  जब  वो  प्रकट  हो
तो  कहने  लगें
वृन्द-कानन  के  वासी
यही  है,  यही  है
हमारा  कन्हैया  !

हमारा  कन्हैया
तुम्हारा  कन्हैया  !

                                                       ( 2013 )

                                                 -सुरेश  स्वप्निल 


सोमवार, 26 अगस्त 2013

आज है जन्माष्टमी !

आज  है  जन्माष्टमी !

श्रीकृष्ण-मंदिर  में
अर्द्ध-रात्रि  के  समय
होनी  है  पूजा
कराएंगे  पंडित जी !

जलेगी  अगरबत्ती
मंत्र  पढ़े  जाएंगे
घंटा-ध्वनि  होगी
फिर  शंख  भी  बजेगा
बजाएंगे  पंडित  जी !

नगर  की  कुमारियां
होंगी  एकत्र  वहां
गाएंगी  सोहर, और
नाचेंगी  घूमर 
नचाएंगे  पंडित  जी !

कृष्ण-प्रेम  विह्वल
किसी  कन्या  का
अंग  कोई
भूल  से  उघड़े
खिल  जाएंगे  पंडित जी !

और  कोई  सु-कुमारी
राधा  बन  आएगी
दधि-माखन  लाएगी
चीर  बेचारी  का
उड़ाएंगे  पंडित  जी !

आदत  तो  आदत  है
जा  सकती  है  भला ?
रात  में  टांगों  में
तकिया  दबा  कर
सो  पाएंगे  पंडित  जी !

                                     ( 1977 )

                            -सुरेश  स्वप्निल 

*प्रकाशन: 'देशबंधु', भोपाल ( 1977 ), 'अंतर्यात्रा' ( 1983 ) एवं अन्यत्र।

मंगलवार, 20 अगस्त 2013

पुलिस सर्वशक्तिमान है !

कल  रात
सपने  में  आई  थी  पुलिस
और  छीन  ले  गई
अभिव्यक्ति  की   स्वतंत्रता

डंडे  मार-मार  कर
झड़ा  दिए  सारे  शब्द
खुरच-खुरच  कर
मिटा  गई  राजनैतिक  समझ
लूट  ले  गई
वैचारिक  चेतना  …


यह  जानते  हुए  भी
कि  यह  मौलिक  अधिकार  है
भारतीय  संविधान  में  …

मगर  पुलिस  को  कौन  समझा  सकता  है
सही  और  ग़लत  का  फ़र्क़
कौन  सिखा  सकता  है
मानवीय  व्यवहार ?

पुलिस  सर्वशक्तिमान  है
जब  तक  उसके  शरीर  पर
चिपकी  हुई  है
ख़ाकी  वर्दी
और  हाथ  में  है  डंडा !

शुक्र  है  कि  यह
स्वप्न  ही  था
बेहद  डरावना  …

मगर  यह  दु:स्वप्न
सत्य  में  बदल  सकता  है
किसी  भी  दिन  …

यह  भारत  है
मानवाधिकार  के  रखवालों !

                                           ( 2013 )

                                   -सुरेश  स्वप्निल