शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

उठो, साथी !

जो  अधमरा  शरीर
सड़क  पर  पड़ा  है
वही  है  महान  भारत  का
भिखमंगा गण !
और जो खड़ा है
उस अधमरे  शरीर के  सीने  पर
पांव  रख  कर
वही  है  तंत्र !

हास्यास्पद  कहें  या  वीभत्स
मगर  सत्य  यही  है
कि  हर  अधिनायक  इस  देश  का
चुना  जाता  है
तथाकथित  रूप  से
इसी  'गण'  से  मत  ले  कर !

यह  समय  शोक  मनाने  का  नहीं  है
जैसे  मरते  हुए  केंचुए  में  रह-रह  कर  उठती  है
जीवन  की  लहर
जैसे  पारंपरिक  युद्धों  में
सिर  कट  जाने  के  बाद  भी
लड़ते  रहते  थे  रुंड
ठीक  उसी  तरह  अचानक
न  जाने  कब  उठ  खड़े  होंगे
सड़क  पर  पड़े  हुए  गण
अपनी  घायल  देह  लिए ...

सारा  संसार  जानता  है
कि  यही  गण  है
जो  भयंकरतम  शस्त्रास्त्र  को
अपनी  दुर्बल  काया  पर  झेल  कर
किसी  भी  महानायक
किसी  भी  अधिनायक  की  सत्ता  को
मिट्टी  में  मिला  देता  है
समय  आते  ही  !

समय  कब  आएगा  मगर
अगली  बार  ?

उठ  जाओ,  महान  भारत  के  महा-मनुष्य
बहुत  हो  चुकी  हिंसा-प्रतिहिंसा
बहुत  हो  चुके  भ्रम-विभ्रम
एक  लक्ष्य
एक  मार्ग
गण  की  क्रांति
जन-जन  की  क्रांति  !

उठो,  साथी  !
मृत्यु  का  डर  जिसे  हो
वह  योद्धा  नहीं
और  'जन-गण-मन'  तो
कदापि  नहीं ! 

                                                                 ( 2014 )

                                                            -सुरेश  स्वप्निल 

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