धरती थर-थर कांप रही है
मनुष्य के भय से
और मनुष्य
प्रकृति के प्रकोप से
हर्क्युलिस के कंधे झुक गए हैं
बोझ से
बार-बार पांव फिसल जाता है
उस बूढ़े देवता का
और मुश्किल यह है
कोई नया देवता
पैदा ही नहीं हुआ
लाखों वर्ष से ...
दोष किसका है, पता नहीं
वास्तविकता यह है
कि बार-बार खुल जाते हैं
धरती के अधपके घाव...
प्रकृति शल्य-चिकित्सा कर रही है
धरती की
सवाल यह है कि
इस मरहम-पट्टी में
जो धंसावशेष पड़े हैं
कौन साफ़ करेगा उन्हें ?
( 2015 )
-सुरेश स्वप्निल
...
मनुष्य के भय से
और मनुष्य
प्रकृति के प्रकोप से
हर्क्युलिस के कंधे झुक गए हैं
बोझ से
बार-बार पांव फिसल जाता है
उस बूढ़े देवता का
और मुश्किल यह है
कोई नया देवता
पैदा ही नहीं हुआ
लाखों वर्ष से ...
दोष किसका है, पता नहीं
वास्तविकता यह है
कि बार-बार खुल जाते हैं
धरती के अधपके घाव...
प्रकृति शल्य-चिकित्सा कर रही है
धरती की
सवाल यह है कि
इस मरहम-पट्टी में
जो धंसावशेष पड़े हैं
कौन साफ़ करेगा उन्हें ?
( 2015 )
-सुरेश स्वप्निल
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