बुधवार, 4 सितंबर 2013

मूर्ख हैं हम और आप

कोई  प्रतिरोध  नहीं
कोई  प्रतिकार  नहीं
कहीं  कोई  विरोध  का  स्वर  नहीं

यदि  यही  रवैया  रहा  जनता  का
यदि  ऐसे  ही  चलती  रहीं  सरकारें
यदि  ऐसे  ही  बढ़ती  रही  मंहगाई
और  बेरोज़गारी
तो  इत्मीनान  रखिए
कोई  नहीं  बचा  सकता  देश  को
उसकी  स्वतंत्रता, संप्रभुता, एकता
और  अखंडता  को….

सरकारें  चाहती  हैं
सब  कुछ  चलता  रहे  यों  ही
सब  कुछ  सहती  रहे  जनता….

मूर्ख  हैं  हम  और  आप
या  कायर
कि  होने  दें  सरकार  की  सारी  इच्छाएं  पूरी ???

                                                               ( 2013 )

                                                        -सुरेश  स्वप्निल