न मालिक ! बहुत हुआ
मज़दूरी तो देनी ही होगी तुम्हें
आज और अभी
बहुत हाड़ तोड़ लिए, मालिक
झंडे उठा-उठा कर
ख़ूब दौड़ लिए यहां-वहां
रात-रात भर जाग-जाग कर
उठाते-धरते रहे
तुम्हारी सभाओं के ताम-झाम
गले फाड़-फाड़ कर नारे लगाते
फेफड़े तक सुजा लिए अपने
किसलिए, मालिक ?
चार पैसे के ही लिए न !
आपने वादा किया था
कि चुनाव के दिन ही
मिल जाएंगे पैसे
अब तो परिणाम भी आ चुका, मालिक !
मालिक, आपकी हार-जीत से
हमें क्या मतलब ?
हमने अपना काम किया
पूरी ईमानदारी से
आप हारे या जीते
हमें इससे क्या ?
मालिक, घर नहीं गए हैं हम
पिछले दो महीने से
हमारा भी घर-बार है
बच्चे हैं छोटे-छोटे....
किस बात का सब्र, मालिक ?
भीख नहीं,
अपने काम की मज़दूरी
मांग रहे हैं हम !
अबे ओ, मालिक !
मज़दूरी देता है सीधे-सीधे
हमारी
या उठाएं झाड़ू ?!!
(2013)
-सुरेश स्वप्निल
मज़दूरी तो देनी ही होगी तुम्हें
आज और अभी
बहुत हाड़ तोड़ लिए, मालिक
झंडे उठा-उठा कर
ख़ूब दौड़ लिए यहां-वहां
रात-रात भर जाग-जाग कर
उठाते-धरते रहे
तुम्हारी सभाओं के ताम-झाम
गले फाड़-फाड़ कर नारे लगाते
फेफड़े तक सुजा लिए अपने
किसलिए, मालिक ?
चार पैसे के ही लिए न !
आपने वादा किया था
कि चुनाव के दिन ही
मिल जाएंगे पैसे
अब तो परिणाम भी आ चुका, मालिक !
मालिक, आपकी हार-जीत से
हमें क्या मतलब ?
हमने अपना काम किया
पूरी ईमानदारी से
आप हारे या जीते
हमें इससे क्या ?
मालिक, घर नहीं गए हैं हम
पिछले दो महीने से
हमारा भी घर-बार है
बच्चे हैं छोटे-छोटे....
किस बात का सब्र, मालिक ?
भीख नहीं,
अपने काम की मज़दूरी
मांग रहे हैं हम !
अबे ओ, मालिक !
मज़दूरी देता है सीधे-सीधे
हमारी
या उठाएं झाड़ू ?!!
(2013)
-सुरेश स्वप्निल