संसार में
सबसे कम गति से
बढ़ता है श्रम का मूल्य
वह भी
न जाने कितनी क़ुर्बानियां दे कर !
आख़िर कौन है
जो तय कर रहा है
लागत-लाभ-पारिश्रमिक के समीकरण ?
कल यदि विद्रोह पर उतर आएं मज़दूर
तो मत कहिएगा कि सूचना नहीं थी
क्या कभी अनाज का मूल्य
पूर्व-सूचना दे कर बढ़ाता है व्यापारी ?
क्या कभी कोई सरकार सोचती है
कि पारिश्रमिक की हर वृद्धि से पहले ही
कितनी और कैसे बढ़ जाती है मंहगाई ?
एक सीमा तो हो
जहां समंजित हो सकें स्वप्न,
शिक्षा, स्वास्थ्य और भविष्य की योजनाएं
जहां बनी रहें तलवारें म्यान में ....
परिस्थितियां बनाने वाले
सोच कर देख लें
पूंजी और श्रम के अवश्यंभावी युद्ध के परिणाम
इसके आगे कुछ नहीं कहना है हमें।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
*सद्यः रचित/ अप्रकाशित/ अप्रसारित रचना। पूर्व-सूचना पर प्रकाशनार्थ उपलब्ध।
सबसे कम गति से
बढ़ता है श्रम का मूल्य
वह भी
न जाने कितनी क़ुर्बानियां दे कर !
आख़िर कौन है
जो तय कर रहा है
लागत-लाभ-पारिश्रमिक के समीकरण ?
कल यदि विद्रोह पर उतर आएं मज़दूर
तो मत कहिएगा कि सूचना नहीं थी
क्या कभी अनाज का मूल्य
पूर्व-सूचना दे कर बढ़ाता है व्यापारी ?
क्या कभी कोई सरकार सोचती है
कि पारिश्रमिक की हर वृद्धि से पहले ही
कितनी और कैसे बढ़ जाती है मंहगाई ?
एक सीमा तो हो
जहां समंजित हो सकें स्वप्न,
शिक्षा, स्वास्थ्य और भविष्य की योजनाएं
जहां बनी रहें तलवारें म्यान में ....
परिस्थितियां बनाने वाले
सोच कर देख लें
पूंजी और श्रम के अवश्यंभावी युद्ध के परिणाम
इसके आगे कुछ नहीं कहना है हमें।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
*सद्यः रचित/ अप्रकाशित/ अप्रसारित रचना। पूर्व-सूचना पर प्रकाशनार्थ उपलब्ध।