मन के किसी अज्ञात
नन्हे-से कोटर में
दुबक कर बैठी रहती हैं
अच्छे दिनों की स्मृतियां…
बचपन के बिखरे पन्नों में
यहां-वहां
अक्सर अधूरे छूट गए चित्र
छोटी-छोटी बातों पर
मित्रों का रूठना-मनाना
भाई-बहनों की छेड़ छाड़…
किशोरावस्था में
शरीर का धीरे-धीरे वयस्क होते जाना
अचानक किसी का
अच्छा लगने लगना
अक्सर बिना किसी ठोस कारण के…
यथार्थ की धरा पर
पहला क़दम पड़ते ही
न जाने कहां बिला जाते हैं
सारे स्वप्न...
यहां तक कि
किराने का हिसाब भी
डराने लगता है किसी प्रेत-जैसा !
कितना भयंकर होता है
वयस्क हो जाने का एहसास
और उससे भी अधिक
बचपन के बिछुड़ जाने का !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
...
नन्हे-से कोटर में
दुबक कर बैठी रहती हैं
अच्छे दिनों की स्मृतियां…
बचपन के बिखरे पन्नों में
यहां-वहां
अक्सर अधूरे छूट गए चित्र
छोटी-छोटी बातों पर
मित्रों का रूठना-मनाना
भाई-बहनों की छेड़ छाड़…
किशोरावस्था में
शरीर का धीरे-धीरे वयस्क होते जाना
अचानक किसी का
अच्छा लगने लगना
अक्सर बिना किसी ठोस कारण के…
यथार्थ की धरा पर
पहला क़दम पड़ते ही
न जाने कहां बिला जाते हैं
सारे स्वप्न...
यहां तक कि
किराने का हिसाब भी
डराने लगता है किसी प्रेत-जैसा !
कितना भयंकर होता है
वयस्क हो जाने का एहसास
और उससे भी अधिक
बचपन के बिछुड़ जाने का !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
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