आओ, बुलडोज़र
आगे बढ़ने से पहले
रुको और देखो
महानगर की छाती पर पसरे
इस विशाल फोड़े को
देखो !
ऊँचाई पर खड़े होकर
अपनी चमकदार आँखों से
बौने झोंपड़ों के जंजाल
और उनकी छाती पर
बिलबिलाते नालों को
देखो गहन अंधकार
कच्ची दारू के समंदर
गांजा, भांग, अफ़ीम
हेरोइन, स्मैक, ब्राउन शुगर
देखो
हैजा, टी .बी ., नासूर
सिफ़लिस , सिरोसिस
अलसर, अमीबिओसिस
देखो आदमी-नुमां जीवाणु
ऐश्वर्यशालियों की अधनंगी सेना
चूस कर फेंकी गई हड्डियाँ
देखो बास मारते भात को
ढकोसते बच्चे
शर्म हीन , भय हीन
रक्त-मांस विहीन
औरतों के कंकाल
ठर्रा पी-पी कर घुलते मर्द
पूँजी के अनमोल उत्पादन ...
बताओ, बुलडोज़र
इस महासंसार को
अपनी ताक़तवर भुजाओं से
ध्वस्त करने से पहले
बताओ !
क्या-क्या देखती हैं तुम्हारी आंखें ?
( 1985 )
-सुरेश स्वप्निल
* प्रकाशन: जून, 1985, दैनिक ' देशबंधु', रायपुर। पुनः प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
आगे बढ़ने से पहले
रुको और देखो
महानगर की छाती पर पसरे
इस विशाल फोड़े को
देखो !
ऊँचाई पर खड़े होकर
अपनी चमकदार आँखों से
बौने झोंपड़ों के जंजाल
और उनकी छाती पर
बिलबिलाते नालों को
देखो गहन अंधकार
कच्ची दारू के समंदर
गांजा, भांग, अफ़ीम
हेरोइन, स्मैक, ब्राउन शुगर
देखो
हैजा, टी .बी ., नासूर
सिफ़लिस , सिरोसिस
अलसर, अमीबिओसिस
देखो आदमी-नुमां जीवाणु
ऐश्वर्यशालियों की अधनंगी सेना
चूस कर फेंकी गई हड्डियाँ
देखो बास मारते भात को
ढकोसते बच्चे
शर्म हीन , भय हीन
रक्त-मांस विहीन
औरतों के कंकाल
ठर्रा पी-पी कर घुलते मर्द
पूँजी के अनमोल उत्पादन ...
बताओ, बुलडोज़र
इस महासंसार को
अपनी ताक़तवर भुजाओं से
ध्वस्त करने से पहले
बताओ !
क्या-क्या देखती हैं तुम्हारी आंखें ?
( 1985 )
-सुरेश स्वप्निल
* प्रकाशन: जून, 1985, दैनिक ' देशबंधु', रायपुर। पुनः प्रकाशन हेतु उपलब्ध।