जहां बोया जाना था प्यार
वहां
तुमने हथियार बो दिए !
और अब
जबकि तुम्हारे चारों तरफ़
चप्पा-चप्पा धरती पर
उग आई हैं संगीनें
तुम्हें सालता है
अपने पांवों का नंगा पन ?
काश ! तुमने देखी होतीं तुमने
पराजित इंसानों की भयाक्रांत आँखें
और याद किया होता
अपना ही इतिहास
कि आदम ख़ोर जंगल से
तुम भी तो गुज़रे थे कभी !
अपने हथियारों की दोहरी मार को पहचानो
सिर्फ़ दूसरों की दीवारें ही नहीं
ढह जाएगा तुम्हारा -अपना भी साम्राज्य
इतिहास की छाती पर मूंग मत दलो
उसने कभी किसी को नहीं किया माफ़ !
( 1984 )
-सुरेश स्वप्निल
* अप्रकाशित / अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
वहां
तुमने हथियार बो दिए !
और अब
जबकि तुम्हारे चारों तरफ़
चप्पा-चप्पा धरती पर
उग आई हैं संगीनें
तुम्हें सालता है
अपने पांवों का नंगा पन ?
काश ! तुमने देखी होतीं तुमने
पराजित इंसानों की भयाक्रांत आँखें
और याद किया होता
अपना ही इतिहास
कि आदम ख़ोर जंगल से
तुम भी तो गुज़रे थे कभी !
अपने हथियारों की दोहरी मार को पहचानो
सिर्फ़ दूसरों की दीवारें ही नहीं
ढह जाएगा तुम्हारा -अपना भी साम्राज्य
इतिहास की छाती पर मूंग मत दलो
उसने कभी किसी को नहीं किया माफ़ !
( 1984 )
-सुरेश स्वप्निल
* अप्रकाशित / अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें