जीवन-साथी की अनुपस्थिति में
दो समय का भोजन
तैयार करते समय
अक्सर पूछा है मैंने
स्वयं से
कि आख़िर क्या ज़रूरी है
जीवन के अंतिम क्षण तक
साम्यवादी बने रहना
और किसी को नौकर न रखना ...
मात्र आधा घंटे के काम के लिए
दो-दो घंटे जूझते रहना
और कच्ची-पक्की रोटियां
खा कर
संतुष्ट हो रहना ?
जब-जब मैं इस विचार तक
धकेला जाता हूं
स्वयं अपने ही मस्तिष्क के द्वारा
मेरी चेतना
मेरे सोच को धिक्कारना
शुरू कर देती है !
मैं जानता हूं
कि मैं
कभी भी नौकर शब्द को
स्वीकार नहीं कर पाउंगा
कम से कम अपने घर में
और मेरी जीवन-संगिनी ?
वह तो किसी भी मूल्य पर नहीं !
एक सीधा-सरल उपाय है
जो मेरी जीवन-संगिनी याद दिलाती रहती है
बाज़ार का खाना....
किंतु, अकेला होते ही
जब भी मैं
भोजन और बाज़ार के अंतर्सम्बंधों पर
सोचता हूं
फिर मुझे मेरी अंतश्चेतना धिक्कारने लगती है !
ज़रा सी देर की असुविधा,
ज़रा सा समय
अपने ऊपर ख़र्च नहीं कर सकते
और अपने-आप को
'साम्यवादी', 'प्रगतिशील' और पता नहीं
क्या-क्या कहते हो !
इस अत्यंत सुखद प्रसंग का
अंत हमेशा एक ही तरह से होता है
-अपने हाथ से बना कच्चा-पक्का
किंतु श्रम-गंध से सुगंधित
स्वादिष्ट भोजन
खाते-खाते
मां को याद करना !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
...
दो समय का भोजन
तैयार करते समय
अक्सर पूछा है मैंने
स्वयं से
कि आख़िर क्या ज़रूरी है
जीवन के अंतिम क्षण तक
साम्यवादी बने रहना
और किसी को नौकर न रखना ...
मात्र आधा घंटे के काम के लिए
दो-दो घंटे जूझते रहना
और कच्ची-पक्की रोटियां
खा कर
संतुष्ट हो रहना ?
जब-जब मैं इस विचार तक
धकेला जाता हूं
स्वयं अपने ही मस्तिष्क के द्वारा
मेरी चेतना
मेरे सोच को धिक्कारना
शुरू कर देती है !
मैं जानता हूं
कि मैं
कभी भी नौकर शब्द को
स्वीकार नहीं कर पाउंगा
कम से कम अपने घर में
और मेरी जीवन-संगिनी ?
वह तो किसी भी मूल्य पर नहीं !
एक सीधा-सरल उपाय है
जो मेरी जीवन-संगिनी याद दिलाती रहती है
बाज़ार का खाना....
किंतु, अकेला होते ही
जब भी मैं
भोजन और बाज़ार के अंतर्सम्बंधों पर
सोचता हूं
फिर मुझे मेरी अंतश्चेतना धिक्कारने लगती है !
ज़रा सी देर की असुविधा,
ज़रा सा समय
अपने ऊपर ख़र्च नहीं कर सकते
और अपने-आप को
'साम्यवादी', 'प्रगतिशील' और पता नहीं
क्या-क्या कहते हो !
इस अत्यंत सुखद प्रसंग का
अंत हमेशा एक ही तरह से होता है
-अपने हाथ से बना कच्चा-पक्का
किंतु श्रम-गंध से सुगंधित
स्वादिष्ट भोजन
खाते-खाते
मां को याद करना !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
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