शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

स्मृति का एक सिरा ...

सिर्फ़  एक  ही  तार  तो  टूटा  है
वायलिन  का
और  देखो,
सारे  स्वर  बिखर  गए
अनियंत्रित  हो  कर….

कभी-कभी  कितनी  महत्वपूर्ण
हो  जाती  हैं
न-कुछ  सी,  छोटी-छोटी  चीज़ें
जैसे  बिटिया  का  दिया  हुआ  रूमाल
और  उसमें  बसी  नर्म-नाज़ुक  ख़ुश्बू 
15-20  वर्ष  बाद  भी 
आ  ही  जाते  हैं  याद ...
जैसे  सर्दी  आते  ही  चुभने  लगते  हैं
स्मृतियों  में
माँ  के  बुने  हुए  स्वेटर
और  मफ़लर  ….

सिर्फ़्  एक  ही  तार
टूटा  था  वायलिन  का
मगर  याद  में  गूंजने  लगे  हैं
पिता  की  पसंद  के   
सैकड़ों  राग  ….

क्या  स्मृति  का  केवल  एक  सिरा
हाथ  में  आने  से
उथल-पुथल  हो  सकता  है
सारा  संसार  ?

लगता  तो  ऐसा  ही  है  !

                                               ( 2013 )

                                         -सुरेश  स्वप्निल 

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