शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

वोटों के भिखारी

कुछ  लोग  जीवन-भर  भीख  मांगते  हैं
और  स्वीकार  भी  नहीं  करते
उन्हें  न  चोरी  से  परहेज़  होता  है
न  लूट  या  धोखाधड़ी  से
उन्हें  न  देश  की  चिंता
न  अपने  आत्म-सम्मान  की

वे  हर  क़ानून  को  अपनी  जेब  में  रखते  हैं
और  न्याय  को  जब  चाहे  ख़रीद  सकते  हैं
ऊंची  से  ऊंची  क़ीमत  दे  कर…

हां,  ईश्वर  से  उन्हें   बहुत  डर  लगता  है
और  उससे  भी  अधिक  उसके  दलालों  से
कम  से  कम  दिखाने  के  लिए

वे  दरअसल  ईश्वर  और  उसके  दलालों  की
वोट  खींचने  की  क्षमता  पहचानते  हैं

वे  चुनाव  लड़ते  हैं
और  जीत  कर
संसद  और  विधानसभाओं  में  बैठ  कर
मूंग  दलते  हैं
देश  की  छाती  पर  !

वे  फिर  आने  वाले  हैं
तुम्हारे  घर
वोटों  की  भीख  मांगने
ताकि  वह  सब  कुछ  लूट  लें
जो  अभी  तक  बचा  हुआ  है  तुम्हारे  पास !

                                                              ( 2013 )

                                                        -सुरेश  स्वप्निल