मुझे मालूम था कि तुम
भूखे आओगे/ जहाँ से भी आओ
इसलिए/ मैंने अपने-आप को सजा लिया है
चांदी की तश्तरी में
[ कल तुमने चीनी के सारे बर्त्तन तोड़ डाले थे न ! ]
एक-एक कर
उतार कर फेंक दो / मेरे सारे कपड़े
और शुरू हो जाओ ....
लेकिन / मुझे समूचा खा चुकने से पहले
बता देना / कि
कैसा लगा तुम्हें / मेरे गोश्त का सौंधापन ?
-एक बात और
कल अन्दर आने से पहले
ज़रूर पढ़ लेना
नई रेट-लिस्ट !
( 1984 )
-सुरेश स्वप्निल
* संभवतः अप्रकाशित
भूखे आओगे/ जहाँ से भी आओ
इसलिए/ मैंने अपने-आप को सजा लिया है
चांदी की तश्तरी में
[ कल तुमने चीनी के सारे बर्त्तन तोड़ डाले थे न ! ]
एक-एक कर
उतार कर फेंक दो / मेरे सारे कपड़े
और शुरू हो जाओ ....
लेकिन / मुझे समूचा खा चुकने से पहले
बता देना / कि
कैसा लगा तुम्हें / मेरे गोश्त का सौंधापन ?
-एक बात और
कल अन्दर आने से पहले
ज़रूर पढ़ लेना
नई रेट-लिस्ट !
( 1984 )
-सुरेश स्वप्निल
* संभवतः अप्रकाशित