बस करो, बहुत हुआ
हम समझ गए हैं विकास के सारे अर्थ !
जान चुके हैं तुम्हारी सब तरक़ीबें
हमें शहर से बेदख़ल करने की
और फिर से
शहर का समाजशास्त्र, भूगोल और पर्यावरण
बदलने की !
तुम हमें चैन से क्यों नहीं जीने देते
एक जगह ?
तुम क्या जानो पचास वर्ष पुराने
आम का पेड़ कटने की व्यथा
और उस पर रहने वाली गिलहरियों के कोटर
नष्ट करने के पाप का अर्थ
और पक्षियों के घोंसले और उनमें फंसे
नवजातों को तितर-बितर करने का दंश ?
सिर्फ़ हम ही बेदख़ल नहीं होते शहर से
हमारे साथ ही बेदख़ल हो जाते हैं
पूर्वजों के तमाम पुण्य
और तुम्हारी तथाकथित समझदारी
और मनुष्यता !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
हम समझ गए हैं विकास के सारे अर्थ !
जान चुके हैं तुम्हारी सब तरक़ीबें
हमें शहर से बेदख़ल करने की
और फिर से
शहर का समाजशास्त्र, भूगोल और पर्यावरण
बदलने की !
तुम हमें चैन से क्यों नहीं जीने देते
एक जगह ?
तुम क्या जानो पचास वर्ष पुराने
आम का पेड़ कटने की व्यथा
और उस पर रहने वाली गिलहरियों के कोटर
नष्ट करने के पाप का अर्थ
और पक्षियों के घोंसले और उनमें फंसे
नवजातों को तितर-बितर करने का दंश ?
सिर्फ़ हम ही बेदख़ल नहीं होते शहर से
हमारे साथ ही बेदख़ल हो जाते हैं
पूर्वजों के तमाम पुण्य
और तुम्हारी तथाकथित समझदारी
और मनुष्यता !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल