सच-सच बतलाइए
आप उस समय कहां थे
जब कल भीड़ एक निर्दोष को
बीच सड़क पर
लाठियों से पीट कर
जान ले रही थी उसकी…
मुझे मालूम है कि आप कहेंगे
'पुलिस भी तो थी वहां पर !'
आपने क्या किया लेकिन ?
पुलिस को याद दिलाया उसका कर्त्तव्य ?
जानना चाहा भीड़ से
उस मरते हुए मनुष्य का दोष ?
आंखें गीली हुईं आपकी
मरते हुए मनुष्य को तड़पता देख कर
कुछ तो किया होगा आपने !
याद कीजिए
क्या किया सोच रहे थे उस समय ?
मैं बताऊँ आप क्या कर रहे थे ?
आप मज़े ले रहे थे आंखें फाड़-फाड़ कर !
मृत्यु को अपनी सामने घटित होने का
आनंद उठा रहे थे !
वह जो मरता हुआ मनुष्य था
आप परिचित भी थे उससे शायद
शहर में यहां-वहां आते-जाते
दुआ-सलाम भी की होगी अक्सर
संभव है कहीं कुछ भावनाएं भी जुड़ी रही हों आपकी
तो भी आप मौन रहे
आपने सिर्फ़ आनंद लिया
एक जीवित मनुष्य को
मृत शरीर में बदलते देखने का …
कल यही भीड़ आपको घेर ले
कल आपका छोटा भाई
या आपकी संतान या आपके माता-पिता
भीड़ के हाथ चढ़ गए तो ???
आख़िर किससे मदद मांगेंगे आप ?
नहीं, न्याय की बात मत कीजिए
मत दीजिए दोष पुलिस को
पल-पल नष्ट होते सामाजिक मूल्यों को
अपनी आत्मा को छू कर देखिए
आप हत्यारे हैं महाशय
स्वयं अपने ही विवेक के !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
*झारखण्ड में एक छात्र-नेता की बीच सड़क पर लाठियों से पीट-पीट कर की गई हत्या पर…
आप उस समय कहां थे
जब कल भीड़ एक निर्दोष को
बीच सड़क पर
लाठियों से पीट कर
जान ले रही थी उसकी…
मुझे मालूम है कि आप कहेंगे
'पुलिस भी तो थी वहां पर !'
आपने क्या किया लेकिन ?
पुलिस को याद दिलाया उसका कर्त्तव्य ?
जानना चाहा भीड़ से
उस मरते हुए मनुष्य का दोष ?
आंखें गीली हुईं आपकी
मरते हुए मनुष्य को तड़पता देख कर
कुछ तो किया होगा आपने !
याद कीजिए
क्या किया सोच रहे थे उस समय ?
मैं बताऊँ आप क्या कर रहे थे ?
आप मज़े ले रहे थे आंखें फाड़-फाड़ कर !
मृत्यु को अपनी सामने घटित होने का
आनंद उठा रहे थे !
वह जो मरता हुआ मनुष्य था
आप परिचित भी थे उससे शायद
शहर में यहां-वहां आते-जाते
दुआ-सलाम भी की होगी अक्सर
संभव है कहीं कुछ भावनाएं भी जुड़ी रही हों आपकी
तो भी आप मौन रहे
आपने सिर्फ़ आनंद लिया
एक जीवित मनुष्य को
मृत शरीर में बदलते देखने का …
कल यही भीड़ आपको घेर ले
कल आपका छोटा भाई
या आपकी संतान या आपके माता-पिता
भीड़ के हाथ चढ़ गए तो ???
आख़िर किससे मदद मांगेंगे आप ?
नहीं, न्याय की बात मत कीजिए
मत दीजिए दोष पुलिस को
पल-पल नष्ट होते सामाजिक मूल्यों को
अपनी आत्मा को छू कर देखिए
आप हत्यारे हैं महाशय
स्वयं अपने ही विवेक के !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
*झारखण्ड में एक छात्र-नेता की बीच सड़क पर लाठियों से पीट-पीट कर की गई हत्या पर…