बहुत समय लगता है
देहांतरण की प्रक्रिया में
एक सम्पूर्ण युग
कदाचित्
बहुत कुछ ऊग जाता है
नि-गोड़ी भूमि में !
मसलन, वे गुलाब
जो रोक लेते हैं तुम्हें
इस राह से आते-जाते...
सच
किसी ने नहीं रोपा था उन्हें
और वे खुंबियां भी
जिन्हें नहीं देखता कोई भी
पता नहीं
कितनी सारी संवेदनाएं
दबा जाते हैं
मिट्टी डालने वाले ...
देखो !
तुम जब गुज़रो इस राह से
गाहे-बगाहे
थोड़ी-थोड़ी मिट्टी डालते रहना
और संभव हो तो
कुछ पानी भी
हां, मगर आंसू नहीं...
आंसू ख़त्म कर देते हैं
सारी उर्वरता
और सारी संभावनाएं
नई नस्लों के जन्म की !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
देहांतरण की प्रक्रिया में
एक सम्पूर्ण युग
कदाचित्
बहुत कुछ ऊग जाता है
नि-गोड़ी भूमि में !
मसलन, वे गुलाब
जो रोक लेते हैं तुम्हें
इस राह से आते-जाते...
सच
किसी ने नहीं रोपा था उन्हें
और वे खुंबियां भी
जिन्हें नहीं देखता कोई भी
पता नहीं
कितनी सारी संवेदनाएं
दबा जाते हैं
मिट्टी डालने वाले ...
देखो !
तुम जब गुज़रो इस राह से
गाहे-बगाहे
थोड़ी-थोड़ी मिट्टी डालते रहना
और संभव हो तो
कुछ पानी भी
हां, मगर आंसू नहीं...
आंसू ख़त्म कर देते हैं
सारी उर्वरता
और सारी संभावनाएं
नई नस्लों के जन्म की !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
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