रविवार, 12 जनवरी 2014

बदलाव का उत्तरदायित्व...

दुःख-भरी  कविताओं  से
कहीं  अधिक  भयंकर  है
आधुनिक  समय  का  यथार्थ

दुर्भाग्य  यह  है
कि  यथार्थ  को  बदलने  का 
उत्तर-दायित्व
जिन  शक्तियों  पर  है
वे  सब  की  सब 
विरोधी  हैं  जनता  की
और  केवल  जन-शत्रु  ही  हैं
जो  सुखी  हैं
इस  क्र्रूर  समय  में...

उस  जनता  को 
कोई  अधिकार  नहीं  शिकायत  करने का
जो  खड़ी  नहीं  होती
अन्याय  के  प्रतिकार  के  लिए
और  चुपचाप  सहती  रहती  है
हर  अत्याचार...

लोकतंत्र  है
तो  व्यवस्था  बदलने  का  जिम्मा
तंत्र  से  अधिक  है
लोक  पर !

अब  समय  बहाने  बनाने  का  नहीं
व्यवस्था  बदलने  का  है
और  सरकार  बदलने  का भी  !

                                                              ( 2014 )

                                                       -सुरेश  स्वप्निल 

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