तुमने जोंक को ज़िन्दा छोड़ा
वह बढ़ कर सांप बन गई
तुमने सांप की पूजा की
वह आदम ख़ोर बाघ में बदल गया
तुम बाघ से डरते रहे
वह विशालकाय व्हेल हो गया
व्हेल के पेट के अँधेरे तहख़ानों में
जीवन की किरण के लिए
भटकते हुए
क्या तुम नहीं सोचते
कि अच्छा होता
यदि जोंक को जोंक रहते
पांव से कुचल देते ? ? ?
( 1983 )
- सुरेश स्वप्निल
*अब तक अप्रकाशित/ अप्रसारित रचना
वह बढ़ कर सांप बन गई
तुमने सांप की पूजा की
वह आदम ख़ोर बाघ में बदल गया
तुम बाघ से डरते रहे
वह विशालकाय व्हेल हो गया
व्हेल के पेट के अँधेरे तहख़ानों में
जीवन की किरण के लिए
भटकते हुए
क्या तुम नहीं सोचते
कि अच्छा होता
यदि जोंक को जोंक रहते
पांव से कुचल देते ? ? ?
( 1983 )
- सुरेश स्वप्निल
*अब तक अप्रकाशित/ अप्रसारित रचना