गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013

समय अंतिम न्यायाधीश है !

समय- न्यायाधीश ने
फिर  सान पर  रख  दी हैं
अपनी  तलवारें
फिर  छलछलाने लगा है रक्त
उस सर्व-शक्तिमान की आंखों  में

कुछ सिर  कट  गिरे  हैं 
बहुत  से  सिर
और  तख़्त-ताज  बाक़ी हैं  अभी
जिन्हें कट  कर  गिरना  है

देखते  जाइए
कल  किसकी  बारी  है
हम  भी  संभवत:  उसकी  सूची  में
होंगे  कहीं  न  कहीं
अपने  मौन  और  अकर्मण्यता  के  चलते...

समय  अंतिम  न्यायाधीश  है
जिससे  आशाएं  की  जा  सकती  हैं
अभी भी !

मौन  भयंकर  अपराध  है
समय  की  आंखों  में
और  अकर्मण्यता  भयंकरतम !

                                                   ( 2013 )
                                       
                                         -सुरेश  स्वप्निल

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