आओ मिल कर लूट मचाएं
अच्छी-ख़ासी भीड़ लगी है
अंधे-बहरे-गूंगे-काने
भक्त-जनों को मूर्ख बनाएं
हाथ-सफाई से काग़ज़ को नोट बनाएं
ताज़े-ताज़े लड्डू-पेड़े
आस्तीन को हिला-डुला कर
मिट्टी को प्रसाद बना कर
अपनी जय-जयकार कराएं
ज्ञान-तर्क की धूल उड़ा कर
कीड़ों को भगवान बनाएं
धर्म-ग्रंथ में क्या लिक्खा है
अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे भी नहीं जानते
चाहे जो भी गढ़ो कहानी
कुछ भी उल्टा-सीधा बक दो
भक्त-जनों में अक़्ल कहां है ?
तुम मत मांगो
लोग मगर फिर भी दे देंगे
तुम बस उनको शिष्य बनाओ
चाहे जैसी दीक्षा बांटो
चाहे जो गुरु-मंत्र बता दो …
डायबिटीज़ की दवा बता कर
रसगुल्ले की मांग बढ़ाओ
लौकी-कद्दू के नुस्ख़े से
जम कर अपनी चांदी काटो
दोनों हाथों लूट-लूट कर
भक्तों को कंगाल बनाओ
दाढ़ी-भगवा-पगड़ी का उपयोग सीख लो
'वैदिक' का बाज़ार बनाओ
संस्कृति में आग लगाओ…
उफ़ ! यह इतना छोटा जीवन !
करने को है इतना-सारा
धर्म और ईमान भूल कर
नोट कमाओ ढेर लगाओ
सात पुश्त की करो व्यवस्था
यहां-वहां गुरुकुल खुलवा दो
नेताओं को शिष्य बना कर
क़ानूनों को धता बताओ
कहां लगे हो ?
बच्चों को बाबा बनने के
गुर सिखलाओ….
अपने दोनों लोक संवारो
सातों जन्म सफल कर डालो
काम-धाम सब छोड़-छाड़ कर
प्रवचन की दूकान चलाओ
नोट कमाओ
भारत का सम्मान बढ़ाओ !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
अच्छी-ख़ासी भीड़ लगी है
अंधे-बहरे-गूंगे-काने
भक्त-जनों को मूर्ख बनाएं
हाथ-सफाई से काग़ज़ को नोट बनाएं
ताज़े-ताज़े लड्डू-पेड़े
आस्तीन को हिला-डुला कर
मिट्टी को प्रसाद बना कर
अपनी जय-जयकार कराएं
ज्ञान-तर्क की धूल उड़ा कर
कीड़ों को भगवान बनाएं
धर्म-ग्रंथ में क्या लिक्खा है
अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे भी नहीं जानते
चाहे जो भी गढ़ो कहानी
कुछ भी उल्टा-सीधा बक दो
भक्त-जनों में अक़्ल कहां है ?
तुम मत मांगो
लोग मगर फिर भी दे देंगे
तुम बस उनको शिष्य बनाओ
चाहे जैसी दीक्षा बांटो
चाहे जो गुरु-मंत्र बता दो …
डायबिटीज़ की दवा बता कर
रसगुल्ले की मांग बढ़ाओ
लौकी-कद्दू के नुस्ख़े से
जम कर अपनी चांदी काटो
दोनों हाथों लूट-लूट कर
भक्तों को कंगाल बनाओ
दाढ़ी-भगवा-पगड़ी का उपयोग सीख लो
'वैदिक' का बाज़ार बनाओ
संस्कृति में आग लगाओ…
उफ़ ! यह इतना छोटा जीवन !
करने को है इतना-सारा
धर्म और ईमान भूल कर
नोट कमाओ ढेर लगाओ
सात पुश्त की करो व्यवस्था
यहां-वहां गुरुकुल खुलवा दो
नेताओं को शिष्य बना कर
क़ानूनों को धता बताओ
कहां लगे हो ?
बच्चों को बाबा बनने के
गुर सिखलाओ….
अपने दोनों लोक संवारो
सातों जन्म सफल कर डालो
काम-धाम सब छोड़-छाड़ कर
प्रवचन की दूकान चलाओ
नोट कमाओ
भारत का सम्मान बढ़ाओ !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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