रविवार, 8 सितंबर 2013

धर्म, मात्र एक हथियार है

फिर  सफल  हो  गए  वे
दिलों  के  बीच  दीवार  बनाने  में
फिर रक्त  से  सींच  दिया
बूंद-बूंद  पानी  से  तरसती  धरती  को
फिर बिछा  दी  गईं  लाशें
निर्दोष  मनुष्यों  की
धर्म  के  नाम  पर…

वे  ध्रुवीकरण  चाहते  हैं
तथाकथित  धर्मों  के  नाम  पर
वे  चाहते  हैं  कि  मनुष्य
एक-दूसरे  की  आस्थाओं  को  नकार  दें
वे  सिद्ध  कर  देना  चाहते  हैं
कि  धर्म
मात्र  एक  हथियार  है
मनुष्यों  को  एक-दूसरे  के  विरुद्ध
खड़ा  करने  का
कि  अलग-अलग  धर्म  के  मनुष्यों  का
रक्त  भी  अलग-अलग  होता  है

कि  एक  धर्म  में  पैदा  हुए  मनुष्य
बेहतर  मनुष्य  होते  हैं
दूसरे  या  तीसरे  धर्म  के  मनुष्यों  से…

वे  उस  विचार  को  ही  मिटा  देना  चाहते  हैं
जिसे  सारा  संसार  जानता  है
'भारतीयता'  के  नाम  से

हमें  दुःख  है
बहुत-बहुत  दुःख
आपसे  यह  पूछते  हुए
कि  आप  मनुष्य  हैं
या  हिंदू
या  मुसलमान
या  बौद्ध,  या  सिख ,  ईसाई,  जैन
या  कोई  और ???

आप  मनुष्य  क्यों  नहीं  हैं,  महाशय  ?

                                                      ( 2013 )

                                                -सुरेश  स्वप्निल



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