सोमवार, 20 मई 2013

मनुष्य होने के बारे में

देश  है
तो  नागरिक  भी  होंगे

नागरिक  होंगे

तो  सरकार  भी  होगी

सरकार  होगी
तो  सेना  भी  होगी
और  पुलिस  भी

सवाल  यह  है  कि
नागरिक,  सरकार, सेना
और  पुलिस  के  अंतर्संबंध
कौन  परिभाषित  करता  है ?

यदि  ये  सम्बंध  पूँजी  निर्धारित  करती  है
तो  समझ  लें,  जनता  की  ख़ैर  नहीं
यदि  पूँजी  विदेशी  भी  है
तो  जनता  के  साथ-साथ
प्राकृतिक  संसाधनों  की  भी  ख़ैर  नहीं

और  यदि  किसी  देश  में  लोकतंत्र  है
और  नागरिक,  सरकार,  सेना  और  पुलिस  के
अंतर्संबंध  पूँजी  निर्धारित  करती  है
और  वह  पूँजी  अमेरिकी  है

तो  समझ  लें,
उस  देश  की  ही  ख़ैर  नहीं
और  साथ-साथ
पास-पड़ोस  के  देशों  की  भी  ख़ैर नहीं !

अमेरिकी  पूँजी  के  आक़ाओं  के  इशारों  पर
आपकी-अपनी  सरकार
आपकी-अपनी  सरकार  की  सेनाएं
और  पुलिस
कब  आप  पर  गोलियां  चलवा  दे
कुछ  नहीं  कहा   जा  सकता ,,,,

यदि  आप  एक  लोकतांत्रिक  देश  के  नागरिक  हैं
जिसकी  सरकार  अमेरिकी  आक़ाओं  के  इशारों  पर 
काम  करती  है
और  अपने  ही  नागरिकों  पर  दमन-चक्र  चलाती  है
आप  दमन  के  शिकार  होते  रहते  हैं
निरंतर
और  कभी  विरोध  में  उठ  कर
खड़े  नहीं  होते
तो  क्षमा  करें  श्रीमान

अपने  मनुष्य  होने  के  बारे  में
फिर  सोचें  एक  बार…. !

                                                                      ( 2013 )

                                                              -सुरेश  स्वप्निल

                                                                          

1 टिप्पणी:

Rajendra kumar ने कहा…

सार्थक संदेश देती एक बेहतरीन रचना,आभार.