सिर्फ किसानों, मजदूरों
और ग़रीबों के बस की है
यह प्रचण्ड धूप !
यह तन झुलसाती लू
और गर्म हवाएं ...!
क्योंकि वे जानते हैं
धूप का तीखापन संकेत है
भरपूर बारिश का ....
बारिश का पर्याप्त होना जगा देता है
किसान, मज़दूर और ग़रीब के मन में नई आशाएं
अच्छे समय की
और भर देती है धरती के कण-कण में नया उछाह
हालांकि कभी बाढ़ बहा ले जाती है
सारे स्वप्न ...और डरा देती है
हर किसान और मज़दूर और ग़रीब को
हर किसान
हर मज़दूर
हर ग़रीब सहन कर ले जाता है
धूप , लू और गर्मी के तीखेपन को
न करे
तो खाएंगे क्या बेचारे !
हर अफ़सर
हर शासक
डरता है मौसम की मार से
और ख़ुश भी होता है
मौसम के बदलते मिज़ाज के साथ
बढ़ती महंगाई की संभावनाओं के साथ
मौसम और जीवनोपयोगी वस्तुओं के भावों का
हर परिवर्त्तन
बढ़ा देता है आर्थिक असमानता
अमीर और ग़रीब के बीच !
मौसम क्या इसीलिए आते-जाते हैं
साल दर साल ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
और ग़रीबों के बस की है
यह प्रचण्ड धूप !
यह तन झुलसाती लू
और गर्म हवाएं ...!
क्योंकि वे जानते हैं
धूप का तीखापन संकेत है
भरपूर बारिश का ....
बारिश का पर्याप्त होना जगा देता है
किसान, मज़दूर और ग़रीब के मन में नई आशाएं
अच्छे समय की
और भर देती है धरती के कण-कण में नया उछाह
हालांकि कभी बाढ़ बहा ले जाती है
सारे स्वप्न ...और डरा देती है
हर किसान और मज़दूर और ग़रीब को
हर किसान
हर मज़दूर
हर ग़रीब सहन कर ले जाता है
धूप , लू और गर्मी के तीखेपन को
न करे
तो खाएंगे क्या बेचारे !
हर अफ़सर
हर शासक
डरता है मौसम की मार से
और ख़ुश भी होता है
मौसम के बदलते मिज़ाज के साथ
बढ़ती महंगाई की संभावनाओं के साथ
मौसम और जीवनोपयोगी वस्तुओं के भावों का
हर परिवर्त्तन
बढ़ा देता है आर्थिक असमानता
अमीर और ग़रीब के बीच !
मौसम क्या इसीलिए आते-जाते हैं
साल दर साल ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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