आम का एक धीर-गंभीर पेड़/ उसके नीचे/ बेतरतीब-से
बिखरे हुए/ सूर्यमुखी के अनगिनत पौधे
और एक खिले हुए सूर्यमुखी के / चेहरे को छूता /
अपने कंधे पर / बकरे के बच्चे को / लादे हुए /
माली का लड़का !
यह दृश्य है मेरे घर के सामने वाले / बंगले की एक ख़ुशनुमां सुबह का !
मैंने चाहा, सुबह को अपनी मुट्ठी में / क़ैद कर लूं !/ यह नहीं हो सका ....
तब मैंने / अपना कैमरा टटोला / उसमें / फ़िल्म नहीं थी !
मैंने फिर सोचा, मुझे क्या करना चाहिए ?...
सामने की सड़क पर / अपनी यूनिफ़ॉर्म शरीर पर लादे / कुछ बच्चे /
बस्ते उठाए / स्कूल जाने को / खड़े थे तैयार ....
मैंने देखा- उनकी तरफ़, माली के लड़के की तरफ़ /
पूछना चाहा उससे- " तुम / स्कूल नहीं जाते क्या ?"
फिर, अपने इस अनपूछे प्रश्न की निरर्थकता पर /
मैं स्वयं लज्जित हो गया / सोचता रहा कुछ क्षण / कि मुझे /
क्या करना चाहिए ?
" मैं / माली के इस लड़के को स्कूल भेज कर ही रहूंगा"-मैंने संकल्प लिया !
लड़का / मेरी ही ओर देख रहा था / मुस्कुराता हुआ !
मैंने / उसे / अपने पास बुला लिया ...
अब / मुझे लग रहा था / सुबह मेरी मुट्ठी में है !
( 1978 )
-सुरेश स्वप्निल
* प्रकाशन : 'इंदौर बैंक परिवार', 1978, 'अंतर्यात्रा'-13, 1983।
बिखरे हुए/ सूर्यमुखी के अनगिनत पौधे
और एक खिले हुए सूर्यमुखी के / चेहरे को छूता /
अपने कंधे पर / बकरे के बच्चे को / लादे हुए /
माली का लड़का !
यह दृश्य है मेरे घर के सामने वाले / बंगले की एक ख़ुशनुमां सुबह का !
मैंने चाहा, सुबह को अपनी मुट्ठी में / क़ैद कर लूं !/ यह नहीं हो सका ....
तब मैंने / अपना कैमरा टटोला / उसमें / फ़िल्म नहीं थी !
मैंने फिर सोचा, मुझे क्या करना चाहिए ?...
सामने की सड़क पर / अपनी यूनिफ़ॉर्म शरीर पर लादे / कुछ बच्चे /
बस्ते उठाए / स्कूल जाने को / खड़े थे तैयार ....
मैंने देखा- उनकी तरफ़, माली के लड़के की तरफ़ /
पूछना चाहा उससे- " तुम / स्कूल नहीं जाते क्या ?"
फिर, अपने इस अनपूछे प्रश्न की निरर्थकता पर /
मैं स्वयं लज्जित हो गया / सोचता रहा कुछ क्षण / कि मुझे /
क्या करना चाहिए ?
" मैं / माली के इस लड़के को स्कूल भेज कर ही रहूंगा"-मैंने संकल्प लिया !
लड़का / मेरी ही ओर देख रहा था / मुस्कुराता हुआ !
मैंने / उसे / अपने पास बुला लिया ...
अब / मुझे लग रहा था / सुबह मेरी मुट्ठी में है !
( 1978 )
-सुरेश स्वप्निल
* प्रकाशन : 'इंदौर बैंक परिवार', 1978, 'अंतर्यात्रा'-13, 1983।
1 टिप्पणी:
दृढ-संकल्प कर लेने पर कोई काम असम्भव नही रह जाता,बेहतरीन प्रस्तुति.
एक टिप्पणी भेजें