गुरुवार, 26 जून 2014

व्यवस्था के हाथों में...

ठीक  उस  समय
जबकि  अंतिम  सांसें
गिनी  जा  रही  थीं
तलवारें  हटा  ली  गई  हैं
भेड़ों  के  सिर  के  ऊपर  से

यह
वधिक  का  हृदय  परिवर्त्तन  है
अथवा,  और  अधिक  क्रूर  भविष्य  का  संकेत ?

भेड़ें  तय  कर  लें
कि  सब-कुछ  भाग्य  पर  छोड़ना  है
या 
अपने  इच्छित  जीवन  के  लिए
संघर्ष  करना  है

मृत्यु  अंतिम  सत्य  है
निस्संदेह  अपरिहार्य
किंतु,  जीवन  के  लिए
संघर्ष  किया  जा  सकता  है
और  किया  जाना  चाहिए

व्यवस्था  के  हाथों  में
सब-कुछ  छोड़ा  नहीं  जा  सकता
अंततः
जीवन  तो  क़तई  नहीं   !

                                                                  (2014)

                                                           -सुरेश  स्वप्निल 

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