एक ही गति होती है
हर महाभारत में
भीष्म पितामह की
बाणों की शैया पर
टिका हुआ शरीर
और हवा में
लटकता हुआ सिर...
हर बार कोई अर्जुन
प्रकट होता रहा है अभी तक
भीष्म की मुक्ति के लिए
लेकिन
इस बार भी यही होगा,
संशय है इसमें
संस्कार बदल दिए गए हैं
इस बार
कौरव-पांडवों के
अब कोई महत्व नहीं
व्यक्ति के पिता या पितामह होने का !
भीष्म को भी
जाना ही होगा
पूर्वजों के मार्ग पर
कहीं कोई कुंठा मन में
दबी रह जाएगी लेकिन....
कदाचित
इससे बेहतर भी हो सकती थी
अंतिम गति ....!
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
....
हर महाभारत में
भीष्म पितामह की
बाणों की शैया पर
टिका हुआ शरीर
और हवा में
लटकता हुआ सिर...
हर बार कोई अर्जुन
प्रकट होता रहा है अभी तक
भीष्म की मुक्ति के लिए
लेकिन
इस बार भी यही होगा,
संशय है इसमें
संस्कार बदल दिए गए हैं
इस बार
कौरव-पांडवों के
अब कोई महत्व नहीं
व्यक्ति के पिता या पितामह होने का !
भीष्म को भी
जाना ही होगा
पूर्वजों के मार्ग पर
कहीं कोई कुंठा मन में
दबी रह जाएगी लेकिन....
कदाचित
इससे बेहतर भी हो सकती थी
अंतिम गति ....!
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
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