वक़्त आ गया है कि मैं
प्रकट हो जाऊं
महाशून्य के गर्भ से
और नष्ट कर दूं चेतना के
सारे सबूतों को
वक़्त आ गया है कि
भूगर्भीय चट्टानों को गति दी जाए
ताकि समतल हो सकें
समृद्धि के वीभत्स पर्वत
और आकाश पर उड़ते देवतागण
ज़मीन पर रेंगती हिकारतों में
एक-मेक हो जाएं
वक़्त आ गया है
कि गुरुत्वाकर्षण को
शब्दकोष से हटा दिया जाए
और समानार्थी दिया जाए
ग्रह-उपग्रह-नक्षत्र को
वक़्त आ गया है कि तुम्हें
हक़ीक़त बता दी जाए
कि यह कायनात बख्शी गई थी तुम्हें
इसलिए
कि तुम रच सको
सौंदर्य के कालातीत महाकाव्य
और खड़े हो सको मेरे सामने
आंखों में आंखें डाल कर
निर्विकार उल्लास में भरे हुए
ओ मेरी व्यर्थतम रचना
ओ कपूत अपात्र !
अब मैं तुम से सारी विरासत
और सारे अल्फ़ाज़ वापस लेता हूं
और तुम्हारा वक़्त भी !
( 2002 )
-सुरेश स्वप्निल
* अप्रकाशित/ अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
-
प्रकट हो जाऊं
महाशून्य के गर्भ से
और नष्ट कर दूं चेतना के
सारे सबूतों को
वक़्त आ गया है कि
भूगर्भीय चट्टानों को गति दी जाए
ताकि समतल हो सकें
समृद्धि के वीभत्स पर्वत
और आकाश पर उड़ते देवतागण
ज़मीन पर रेंगती हिकारतों में
एक-मेक हो जाएं
वक़्त आ गया है
कि गुरुत्वाकर्षण को
शब्दकोष से हटा दिया जाए
और समानार्थी दिया जाए
ग्रह-उपग्रह-नक्षत्र को
वक़्त आ गया है कि तुम्हें
हक़ीक़त बता दी जाए
कि यह कायनात बख्शी गई थी तुम्हें
इसलिए
कि तुम रच सको
सौंदर्य के कालातीत महाकाव्य
और खड़े हो सको मेरे सामने
आंखों में आंखें डाल कर
निर्विकार उल्लास में भरे हुए
ओ मेरी व्यर्थतम रचना
ओ कपूत अपात्र !
अब मैं तुम से सारी विरासत
और सारे अल्फ़ाज़ वापस लेता हूं
और तुम्हारा वक़्त भी !
( 2002 )
-सुरेश स्वप्निल
* अप्रकाशित/ अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें