कुछ हथियार ज़रूरी हैं
इंसानियत के लिए
मसलन आशा, आस्था, अमन
मसलन प्यार ...
कैसे भूल जाते हैं लोग
सृष्टि के सुन्दरतम शब्द
उनके उच्चारण, उनके भाव
उनके अर्थ ?
क्यों नहीं भूल पातीं क़ौमें
मानव-रक्त और मांस के स्वाद
अपने क्रूर, नृशंस, बर्बर
और गर्हित इतिहास !?
क्या सचमुच
इतना ज़रूरी है ज़िन्दा रखना
गोरी नस्लों की श्रेष्ठता के दंभ
आर्थिक-उपनिवेशवाद ...
कैसी भयंकर आग है
कितनी भीषण ध्वनियां
कितनी असहनीय गंध
और कितने नज़दीक़ ...
कहीं मर तो नहीं रहा
तुम्हारे
और मेरे भीतर का मनुष्य ?
हां, कुछ हथियार ज़रूरी हैं
दुनिया को जिलाए रखने के लिए !
( 22 मार्च , 2003 )
-सुरेश स्वप्निल
* अपनी जीवन-संगिनी, कविता जी के जन्मदिन पर।
** अप्रकाशित / अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु उपलब्ध
इंसानियत के लिए
मसलन आशा, आस्था, अमन
मसलन प्यार ...
कैसे भूल जाते हैं लोग
सृष्टि के सुन्दरतम शब्द
उनके उच्चारण, उनके भाव
उनके अर्थ ?
क्यों नहीं भूल पातीं क़ौमें
मानव-रक्त और मांस के स्वाद
अपने क्रूर, नृशंस, बर्बर
और गर्हित इतिहास !?
क्या सचमुच
इतना ज़रूरी है ज़िन्दा रखना
गोरी नस्लों की श्रेष्ठता के दंभ
आर्थिक-उपनिवेशवाद ...
कैसी भयंकर आग है
कितनी भीषण ध्वनियां
कितनी असहनीय गंध
और कितने नज़दीक़ ...
कहीं मर तो नहीं रहा
तुम्हारे
और मेरे भीतर का मनुष्य ?
हां, कुछ हथियार ज़रूरी हैं
दुनिया को जिलाए रखने के लिए !
( 22 मार्च , 2003 )
-सुरेश स्वप्निल
* अपनी जीवन-संगिनी, कविता जी के जन्मदिन पर।
** अप्रकाशित / अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु उपलब्ध
1 टिप्पणी:
बढिया रचना
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