1.
न्याय समय-सापेक्ष होता है
और समय
सरकार-सापेक्ष
न्याय, समय और सरकार की
इस तिगलबंदी में
न असहमति की गुंजाइश है
न विद्रोह की ...
बेशक़, कुछ लोग
मानते नहीं
और चढ़ा दिए जाते हैं
सूली पर !
2.
असमय मृत्यु
दुःख का कारण है
और वह भी
एक दंड के रूप में ...
आप न्याय कर नहीं सकते
हम ख़ुद अपना न्याय कर लें, तो
अपराधी कहलाए जाएं
सत्ता आपकी है
क़ानून, अदालतें, सेना, पुलिस
सबके सब आपके
हम कहां हैं
आपकी इस तथाकथित
'लोकतांत्रिक प्रणाली' में ?
हम
एक अरब से अधिक आबादी हैं
आम जन की
बार-बार
याद क्यों दिलानी पड़ती है
आपको ?
3.
आप जीत गए, सरकार !
छल-छद्म, धन और सत्ता-बल के सहारे
हम हार गए
क्योंकि हारना ही था हमें
क्योंकि वे गुण हैं ही नहीं हममें
जिनके सहारे
जीत मुमकिन बनाई जाती है
इन दिनों !
याद रखिए,
न तो आपकी जीत अंतिम है
न हमारी हार ....
पांसा पलट भी सकता है
किसी रोज़ !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
....
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