ये कठपुतलियां कौन हैं
जिनकी न डोर दिखाई देती है
न डोर थामने वाली उंगलियां
मगर
जिनकी एक-एक गति पर
उथल-पुथल हो उठता है
पूरा देश ?!
बहुत भयंकर हैं
इन कठपुतलियों के इरादे
और उनसे भी भयानक हैं
इन्हें नचाने वाली उंगलियों की गतियां
वे हिलती हैं तो कहीं न कहीं
गिरने लगती हैं
लाशें !
लोग जैसे भूल ही जाते हैं
कि वे
जीते-जागते, बुद्धिमान मनुष्य हैं
कठपुतलियां नहीं हैं महज़....
वे अपना नाम-पता,
धर्म-संस्कृति, इतिहास और वर्त्तमान
सब कुछ भूल जाते हैं
और तब्दील होते चले जाते हैं
मानव-बमों में !
नहीं, सिर्फ़ सपने देखने
और सपने में डर जाने से नहीं चलेगा
अब तलाशने ही होंगे
इन कठपुतलियों को नचाने वाले धागे
और वे बदनीयत हाथ
तोड़ देनी होंगी वे उंगलियां
जिनके वीभत्स संकेतों पर
नष्ट होती जा रही है
संसार के श्रेष्ठतम् युवाओं की
पूरी की पूरी पीढ़ी !
सिर्फ़ सच्चे देशभक्त ही
बचा सकते हैं अब इस देश को !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.
जिनकी न डोर दिखाई देती है
न डोर थामने वाली उंगलियां
मगर
जिनकी एक-एक गति पर
उथल-पुथल हो उठता है
पूरा देश ?!
बहुत भयंकर हैं
इन कठपुतलियों के इरादे
और उनसे भी भयानक हैं
इन्हें नचाने वाली उंगलियों की गतियां
वे हिलती हैं तो कहीं न कहीं
गिरने लगती हैं
लाशें !
लोग जैसे भूल ही जाते हैं
कि वे
जीते-जागते, बुद्धिमान मनुष्य हैं
कठपुतलियां नहीं हैं महज़....
वे अपना नाम-पता,
धर्म-संस्कृति, इतिहास और वर्त्तमान
सब कुछ भूल जाते हैं
और तब्दील होते चले जाते हैं
मानव-बमों में !
नहीं, सिर्फ़ सपने देखने
और सपने में डर जाने से नहीं चलेगा
अब तलाशने ही होंगे
इन कठपुतलियों को नचाने वाले धागे
और वे बदनीयत हाथ
तोड़ देनी होंगी वे उंगलियां
जिनके वीभत्स संकेतों पर
नष्ट होती जा रही है
संसार के श्रेष्ठतम् युवाओं की
पूरी की पूरी पीढ़ी !
सिर्फ़ सच्चे देशभक्त ही
बचा सकते हैं अब इस देश को !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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