बहुत शौक़ है न तुम्हें
सच बोलने
जानने और समझने का
तो तय कर लो
कि कब और कैसे मारे जाना
पसंद करोगे....
जीने कौन देगा तुम्हें
न सरकार, न पूंजीपति
न ग़ुंडे-बदमाश
अदालत भी क्या करेगी
दो सिपाही तैनात करवा देगी
सुरक्षा के नाम पर
जो मौक़ा मिलते ही बिक जाएंगे
तुम्हारे दुश्मनों के हाथों !
पढ़े-लिखे हो
बेहतर है नौकरी कर लो
किसी पूंजीपति के यहां
कहो तो चपरासी बनवा दें
नगर-पालिका में
कहां पड़े हो
सच-झूठ के चक्कर में
भविष्य देखो अपना
और अपनी संतानों का !
अब अगर मरना ही चाहो
तो तुम्हारी मर्ज़ी !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.
सच बोलने
जानने और समझने का
तो तय कर लो
कि कब और कैसे मारे जाना
पसंद करोगे....
जीने कौन देगा तुम्हें
न सरकार, न पूंजीपति
न ग़ुंडे-बदमाश
अदालत भी क्या करेगी
दो सिपाही तैनात करवा देगी
सुरक्षा के नाम पर
जो मौक़ा मिलते ही बिक जाएंगे
तुम्हारे दुश्मनों के हाथों !
पढ़े-लिखे हो
बेहतर है नौकरी कर लो
किसी पूंजीपति के यहां
कहो तो चपरासी बनवा दें
नगर-पालिका में
कहां पड़े हो
सच-झूठ के चक्कर में
भविष्य देखो अपना
और अपनी संतानों का !
अब अगर मरना ही चाहो
तो तुम्हारी मर्ज़ी !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.
1 टिप्पणी:
आज सच बोलना और मरना पूरक हो गए हैं ... प्रभावी रचना ...
एक टिप्पणी भेजें