पता नहीं कि कब
देश हुआ करता था
सोने की चिड़िया ...
हमने जो समय देखा है उसमें
सिर्फ़ बदहाली ही रही है
नागरिकों की नियति !
कहते तो हैं कि लोकतंत्र है यहां
'लोक' का अर्थ संभवतः वही होता है
जो कभी शिकारी के लिए
शिकार का होता था
हर पांच वर्ष में निकलती हैं
हांका लेकर
शिकारियों की टोलियां
और मार लाती हैं
अगले हांके तक के लिए
पर्याप्त जानवर !
जब देश जंगलों और जंगलियों का देश था
तो शायद कहीं बेहतर था
जब देश जंगलों और जंगलियों का देश था
तो लोग
और शासन चलाने वाले
कहीं ज़्यादा मनुष्य होते थे ....
-( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
देश हुआ करता था
सोने की चिड़िया ...
हमने जो समय देखा है उसमें
सिर्फ़ बदहाली ही रही है
नागरिकों की नियति !
कहते तो हैं कि लोकतंत्र है यहां
'लोक' का अर्थ संभवतः वही होता है
जो कभी शिकारी के लिए
शिकार का होता था
हर पांच वर्ष में निकलती हैं
हांका लेकर
शिकारियों की टोलियां
और मार लाती हैं
अगले हांके तक के लिए
पर्याप्त जानवर !
जब देश जंगलों और जंगलियों का देश था
तो शायद कहीं बेहतर था
जब देश जंगलों और जंगलियों का देश था
तो लोग
और शासन चलाने वाले
कहीं ज़्यादा मनुष्य होते थे ....
-( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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