भेड़िये : एक
भेड़िये को सौंप दी गई है
जंगल की कमान
खरगोशों !
सावधान रहो
बहुत सोच-समझ कर
निकलना
मांद से !
भेड़िये : दो
भेड़ियों से कहो
हुआ-हुआ न करें
अभी से
बहुत दूर हैं अभी
चुनाव !
भेड़िये : तीन
भेड़िये बहुत कम हैं
संख्या में
और भेड़ें असंख्य
दस-दस भेड़ें काफ़ी हैं
एक-एक भेड़िये के लिए
तो टूट पड़ो
भेड़ों !
देर किस बात की है ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
1 टिप्पणी:
आप की ये लघु कविताएँ बहुत कुछ कहती हैं । इन का व्यंग्य भी मारक है ।
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